एक मेंढक था।उसमें हाथी को रौब और मदमस्त चाल से चलता हुआ देखा। मेंढक के दिमाग में एक धुन सवार हो गई कि मैं भी हाथी जैसा दिखूं; मेरा भी हाथी जैसा विशाल शरीर हो और हाथी जैसी मदमस्त चाल चलूं ?
बस, फिर क्या था ? वह मेंढक साइकिल की दुकान पर पहुंचा । और बोला- भैया! मेरे शरीर में इतनी हवा भरो कि मैं हाथी जितना बड़ा हो जाऊं । दुकानदार ने मेंढक को बहुत समझाया: तू अपने होने में ही खुश रह, हाथी जैसे बनने का ख्याल छोड़ दे। मगर मेंढक की समझ में कुछ नहीं आया । दुकानदार ने मजबूरन पंप उठाया और मेंढक के शरीर में हवा भरना शुरू कर दिया।
मेंढक ने कहा और भरो । उसने एक-दो पंप और मारे । मेंढक बोला और भरो । दुकानदार ने एक-दो पंप और मारे । मेंढक बोला : और भरो। बस , भरते जाओ, रुको मत। जब तक मैं फुल कर हाथी जैसा बड़ा न हो जाऊं , भरते जाओ। उसने एक पंप और मारा की मेंढक का पेट फट गया और उसके प्राण पखेरू उड़ गए । वो मेंढक और कोई नहीं , तुम ही हो । तुम भी तो झूठे रौब और प्रदर्शन में मरे जा रहे हो । अहंकार की झूठी हवा में तू ले जा रहे हो।
तो , वह मेंढक तुम ही हो जिसके सिर पर बड़ा बनने का भूत सवार है । बड़ा कौन ? मैं पूछता हूं : बड़ा कौन ?
क्या वह जिसके पास शक्ति है ? सत्ता है ? वैभव है ? पद है ? नहीं, जी नहीं। वह है जिसमें बड़प्पन है। जो बड़ों का आदर और छोटों को प्यार करना जानता है वह बड़ा है। जो हाथ जोड़कर जीना और मुस्कुरा कर मरना जानता है वह बड़ा है।
गृहस्थ कहता है कि मैं बड़ा हूं ,और साधु कहता है कि मैं बड़ा हूं ,मगर ज्ञानी कहता है कि ना तो गृहस्थ बड़ा है ना ही साधु बड़ा है ।बड़ा तो वह है जो प्रभु के रंग में रंग गया । जिसके हिय की आंखें, भीतर के नेत्र खुल गए ,वह बड़ा है । आदमी हाइट , लाइट और साइज से बड़ा नहीं होता । आदमी बड़ा होता है अपने उदात्त विचारों, मधुर व्यवहार और सद्कर्मों से।
यहां पर पूरा कौन है ? सभी अधूरे हैं। गृहस्थ भी अधूरा है और साधु भी अधूरा है । एक दृष्टि से साधु भी अधूरा है, क्योंकि वह गृहस्थी पर निर्भर होता है , उसकी आहार–विहार ,निहार आदि की चर्या बगैर गृहस्थ के पूरे नहीं होती । इस अपेक्षा से साधु भी अधूरा है। गृहस्थ तो अधूरा है ही । बगैर साधु के आशीष और मार्गदर्शन के उसकी गति नहीं उसकी सद्गति नहीं । सभी अधूरे हैं । यहां कोई एक आदमी सबसे बड़ा कभी नहीं हो सकता । यहां बड़ा से बड़ा आदमी भी छोटा है और छोटे से छोटा आदमी भी बड़ा है । महावीर स्वामी का अनेकांत दर्शन यही कहता है ।
गांव में एक पंडित आया। पंडित ने एक बच्चे से पूछा ? बेटा ! बताओ इस गांव में अब तक कितने बड़े आदमी पैदा हुए ? बच्चे ने कहा – बड़ा आदमी तो इस गांव में अब तक एक भी पैदा नहीं हुआ। पंडित बोला – मगर मैंने तो सुना है कि इस गांव में कई बड़े – बड़े आदमी पैदा हुए। बच्चे ने कहा : पंडितजी ! बड़ा आदमी पैदा नहीं होता , बड़ा आदमी तो बना जाता है । पैदा तो हमेशा बच्चे ही होते हैं।
बड़े नहीं प्यारे बनो, लोगों के दुलारे बनो।
बहुत सही
पसंद करेंLiked by 1 व्यक्ति
बहुत बहुत धन्यवाद जो आपको मेरी यह पोस्ट पसंद आई।
पसंद करेंपसंद करें