जब व्यक्ति यह सोचता है कि काश ! मुझे जीवन में ऐसा कोई मजबूत सहारा मिल जाए जिसकी मदद से मैं कामयाब हो सकूं, तो व्यक्ति यह ख़ुद ही स्वीकार कर लेता है कि वह बहुत कमजोर है।
जब व्यक्ति बार-बार यह सोचता है, तो वह और कमजोर होता चला जाता है। हर असफलता के बाद यही सोचता रहता है कि मुझे कोई सहारा नहीं मिला, इसीलिए मैं सफल नहीं हो पाया। फिर वह अपनी सफलता के लिए अकेले संघर्ष करने का प्रयास नहीं करता, बल्कि वह हर असफलता के बाद कोई दूसरा सहारा खोजने का प्रयास करता रहता है।
यह प्रवृति व्यक्ति को आत्म-निर्भर बनने से रोकती रहती है, और आत्म-निर्भर बने बिना कामयाबी मिल नहीं सकती। इसीलिए जीवन में सहारे खोजने में ध्यान नहीं देना चाहिए, बल्कि खुद में ही जीवन की जंग को जीतने का साहस पैदा करना चाहिए।
सहारा लेने में तो बहुत बड़ा जोखिम है। सहारा नहीं मिला, तो परेशानी, सहारा गलत मिल गया, तो उससे भी बड़ी परेशानी और सहारा मिलकर बीच में छूट गया, तो पूरी तरह बेसहारा होने की सबसे बड़ी परेशानी। इसलिए जीवन की गाड़ी को किसी के सहारे चलाने की निर्भरता नहीं होनी चाहिए। आपको कोई सहारा मिल भी रहा है, तो अपने आपमें इतनी क्षमता का विकास अवश्य करना चाहिए कि आप स्वयं भी उस कार्य को करने पर पूरी तरह सक्षम बने रहे।
कार्य की शुरुआत भले ही छोटे से करें। स्वयं सीखते और बढ़ते जाएं, पर जो भी करें, उसको पूरी तरह आत्म-निर्भर होकर करें और संभालने की क्षमता भी उसी तरह बढ़ाते जाएं। आपको लगता है कि अपनी क्षमता से बहुत अधिक कार्य बढ़ चुका है, तो बेहतर यही होगा कि आगे की वृद्धि को रोककरन पहले अपनी क्षमता को बढ़ाएं ।
यह सोचना भी गलत है कि कोई अच्छा सहारा मिलने से ही बड़ा कार्य हो पाता है। सच इसके बिल्कुल विपरीत है। बड़ा कार्य वे ही कर पाते हैं, जो बिना किसी सहारे के सब कुछ करने की क्षमता अपने भीतर रखते हैं।
सहारा नहीं मिलना भी सीखने का एक बहुत बड़ा कारण बनता हैं।
जब व्यक्ति किसी मुश्किल में होता है और उसकी कोई सहारा नहीं मिलता है तो उसे एक बहुत बड़ा मौका मिलता है उसे मुश्किल से बाहर निकालने सीखने का इसी में कई शक्तियों का विकास हो जाता है।