अन्य समयों की अपेक्षा आज के समय में आत्म निरीक्षण की सबसे अधिक आवश्यकता है। अन्य को देखने वाले या पराये दोषों को शतमुख से उधाड़ने वाले सैकड़ों – हजारों पंचायती करने वाले मिल जाएंगे परंतु दूसरों को छोड़कर स्वयं को देखने वाले आत्मनिरीक्षण करने वाले हजारों में कोई दो – चार विरले ही मिलेंगे। पर की पंचायत करने की बीमारी जिस समाज में या कुटुंब में व्यापक रूप पकड़ लेती है। वह समाज या कुटुंब अन्ततः सर्वनाश के कगार पर जाकर खड़ा हो जाता है।
‘हम कैसे लगते हैं ?’ इसकी अपेक्षा ‘हमें कैसा होना चाहिए’ यही हमारा मुद्रा लेख होना चाहिए। दूसरे की योग्यता – अयोग्यता का विचार करने की अपेक्षा ‘हम स्वयं योग्य है या नहीं,’ यह माप – तोल उसी कांटे पर करना चाहिए जिस पर हम दूसरों को तोलने के लिए चले हैं।
आप अपनी अपेक्षा दूसरों को मूर्ख समझने की मूर्खता कभी ना करें। अपनी अज्ञानता को खोजो। और योग्य व्यक्ति के सामने उसे प्रकट करने में शर्म ना खाओ! इसमें आपका गौरव है, यह कभी ना भूले।
अपने आपको आगे लाने की तथा अपना ही स्वार्थ साधने की क्षुद्र प्रवृत्ति का त्याग करना ही होगा। अपने स्वार्थ को गौण करके मज्मत्व को त्यागने की उदारता अपनी ही होगी। इसके बिना आज समाज में और सरकार में भड़क रही अशांति शांत नहीं हो सकती ।
अपनी आवश्यकताएं या अपनी दु:ख – दर्द हर किसी के सामने कभी मत कहो। परंतु दूसरों के दु:ख – दर्द और उनकी शिकायतें सुनने – समझने के लिए सदा तत्पर रहो। ‘हम जो करते हैं वही सत्य है, या हम जो मानते हैं वही सही है’, यह घमंड जल्दी से जल्दी छोड़ देना चाहिए। परंतु दूसरों के विचारों को सुनो – समझो और उनमें रहे हुए सत्यांश को स्वीकार करो।
जब तुमसे कोई भूल हो जाए, या कोई प्रामाणिकता के साथ तुम्हारी भूल बतावे तो वंट न छोड़ने वाली रस्सी की तरह अक्कड़ मत बनो परंतु सरल बनो। असत्य – मार्ग छोड़कर सत्य की राह पर चलने का दृढ़ मनोबल अपनाओ।
तुम जो क्रियाएं, अनुष्ठान या धार्मिक आचारों का पालन करते हो, उससे स्वयं को धर्मात्मा कहलवाने की लालसा मत रखो। परंतु वे आचार तुम्हारे जीवन में एकरस बने हैं या नहीं ? उन अनुष्ठानों की योग्यता तुमने प्राप्त की है या नहीं ? यह सब तुम्हारे चिंतन का विषय होना चाहिए।
आज जिस गुण की तात्कालिक आवश्यकता है, वह है – आत्म निरीक्षण । आप एकांत में अपनी आत्मा से पूछ लें कि ‘आपके जीवन की दिशा में परिवर्तन जरूरी है या नहीं ?’
उत्तर में यदि “हां” आवे तो उसके लिए सदा जागते रहो।