सुख और दु:ख जीवन के मेहमान हैं। दु:खों को रोकना मानव के हाथ में नहीं परंतु दुखों को सुख में बदलना उसके हाथ में है।
जीवन में कोई भी परिस्थिति या घटनाएं शुभाशुभ कर्मों के आधार पर घटित होती हैं। अत: परिस्थिति को बदलने का प्रयास ना करके मन, स्थिति को बदलने की साधना करनी चाहिए। क्योंकि जिंदगी की कथा मृत्यु की व्यथा पर ही समाप्त होती है। किंतु मानव मन नाना प्रकार के सपने, कल्पनाएं और विविध आयोजन करता है कि कल मुझे यह करना है,परसों यह करना है, एक वर्ष बाद मैं ऐसा करूंगा, दस वर्ष बाद में ऐसा करूंगा। परंतु आंखों बंद होते ही यह जीवन – लीला समाप्त हो जाती है। अतः जीवन को आदर्श बनाने के लिए कुछ गुणों की जरूरत है।
जैसे सुगंध के बिना फूल की कीमत नहीं, व्यक्तियों के बिना मकान की शोभा नहीं उसी प्रकार विनय गुण के बिना जीवन में पूर्णता की प्राप्ति नहीं हो सकती।
महाभारत का युद्ध प्रारंभ होने से पूर्व जब दोनों पक्षों की सेनाएं एक दूसरे के आमने सामने खड़ी थी उस समय धर्मराज युधिष्ठिर अपने रथ से नीचे उतरे पैदल चलकर कौरवों की सेना के तरफ आए। जब धर्मराज को पितामह ने, गुरु द्रोणाचार्य तथा कृपाचार्य ने अपनी ओर आते देखा तो वे भी रथ से नीचे उतरे धर्मराज ने तीनों के चरण – स्पर्श किए और युद्ध की अनुमति तथा आशीर्वाद मांगा तीनों ने उन्हें “विजयी भव”कहकर युद्ध में विजय प्राप्त होने का आशीर्वाद दिया। धर्मराज के लौट जाने पर दुर्योधन ने गरज कर कहां, “पितामह आप हमारी सेना के प्रधान सेनापति है और विजय होने का आशीर्वाद युधिष्ठिर को दे रहे हैं ऐसा क्यों ?”
पितामह ने कहा – दुर्योधन ! यह सृष्टि का नियम है – जो झुकेगा वही पाएगा जब कोई व्यक्ति किसी के चरण स्पर्श करता है तो आशीर्वाद का हाथ स्वयं ही ऊपर उठ जाता है। परंतु तुम्हारा अभिमान तुझे झुकने नहीं देता यदि तुम भी अपने बड़े भैया धर्मराज का चरण स्पर्श करते तो वे भी तुम्हें अवश्य ही विजयी होने का आशीर्वाद देते। दुनिया में यदि कुछ पाना है तो झुकना ही पड़ेगा।
गुरु आशीर्वाद देता नहीं है गुरु से तो आशीर्वाद बरसता है। जैसे दीप से रोशनी निकलती है, फूल से सुगंध निकलती है। ठीक ऐसे से गुरु से आशीर्वाद बरसता है लेकिन लेने की योग्यता चाहिए, स्वीकार भाव चाहिए, चातक की भांति मुंह आकाश की तरफ प्रार्थना से भरा हुआ ह्रदय चाहिए। स्वाति की बूंद बंद मुंह में नहीं गिरेगी। वर्षा बरसती हो और तुम छाते के नीचे खड़े हो जाओ तो भेगोगे नहीं। मेध आएंगे और चले जाएंगे तुम सूखे के सूखे रह जाओगे। गुरु ने अपनी साधना के द्वारा उच्च शिखर की ऊंचाई को पा लिया है जिससे कृपा के स्त्रोत बहते रहते हैं। यदि तुम उसमें नहा लोगे तो जन्मो – जन्म की धूल बह जाएगी लेकिन उस स्नान में आपको ग्रहण करने की क्षमता तथा योग्यता चाहिए।
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