किसी जमाने में मगध देश पर चतुरंग वीर राज्य करता था। वह शतरंज खेलने में बहुत निपुण था। दूर-दूर तक उसकी प्रसिद्धि थी। शतरंज के बड़े-बड़े खिलाड़ी भी उससे मुक़ाबला नहीं कर पाते थे।
रोज शतरंज के खिलाड़ियों को खेलने के लिए आता देख राजा ने घोषणा की “जो कोई शतरंज में मुझसे हार जाएगा उसका सिर काट दिया जाएगा।”
यह घोषणा सुनते ही शतरंज के खिलाड़ियों ने आना बंद कर दिया। राजा से शतरंज खेलने के लिए कोई न आता। अगर भूला – भटका, इक्का-दुक्का कोई पहुंच भी जाता, तो राजा उनको अपनी घोषणा याद दिलाता और अगर कोई जिद पकड़ कर खेलता भी, तो राजा उसको हराकर अपनी घोषणा के अनुसार उसका सिर कटवा देता।
जब दो-चार के सिर इस तरह कट गए तो राजा से शतरंज खेलने वाला ही कोई ना रहा। फिर राजा की भी शतरंज खेलने की आदत जाती रही।
उन्हीं दिनों, कावेरी नदी के किनारे एक पंडित रहा करता था। वह शतरंज का बहुत अच्छा खिलाड़ी था। अगर कोई शतरंज खेल रहा होता, तो प्रायः वह कहा करता, ‘यह दाव खेलो, और काले राजा को पकड़ लो।’ अगर कोई खेलने का मौका देता तो वह स्वयं उन्हें खेलकर भी दिखा देता।
इस पंडित तक मगध देश के राजा की घोषणा पहुंची। उसको राजा पर गुस्सा आया। इस राजा को इतना घमंड क्यों है ? शतरंज खेल का मजा खेलने में है, न कि जीतने में। खेल में तो एक जीतने वाला होगा और दूसरा हारने वाला ही। सिर्फ हार जाने से ही क्या यह राजा एक खिलाड़ी का सिर कटवा सकता है ?
उस पंडित ने मगध देश के राजा को सबक सिखाने की सोची। वह पैदल चलता – चलता मगध देश पहुंचा। जैसे – तैसे उसको राजा का दर्शन भी मिल गया।
“महाराज मैं कावेरी के किनारे रहता हूं। यह जानकर की शतरंज में आपको कोई हरा नहीं सकता, आप का खेल देखने मैं चला आया हूं,” पंडित ने कहा।
“हां, मुझे भी शतरंज खेलने की इच्छा हो रही है, पर कोई खिलाड़ी ही नहीं मिलता। मैंने यह घोषणा कर रखी है, कि अगर कोई मुझसे हार गया तो मैं उसका सिर कटवा दूंगा। इसीलिए कोई आता ही नहीं है,” राजा ने कहा।
पंडित ने कुछ सोचकर कहा, “अगर ऐसी बात है तो मैं आपके साथ खेलूंगा।”
“अरे पंडित! कहीं पागल तो नहीं हो गए हो ? हार गए तो सजा भोगने के लिए तैयार होना न ?” राजा ने पूछा।
“इससे पहले कि मैं इस प्रश्न का जवाब दूं, मैं चाहता हूं कि आप कृपया मेरी एक शंका का निवारण करें,”पंडित ने कहा।
“बताओ तुम्हारा क्या संदेह है ?” राजा ने पूछा।
“अगर खेल में मैं हार गया तो आप मेरा सिर कटवा देंगे। मान लीजिए, अगर मैं आपसे जीत गया तो आप मुझे क्या देंगे ? पंडित ने पूछा।
“शतरंज में जीतने वाला जो चाहे मैं उसे दूंगा। कहो क्या चाहते हो ?” राजा ने पूछा।
“अगर मैं जीत गया तो मुझे धान दिलवाईये। शतरंज के एक खाने के लिए एक, दूसरे खाने के लिए दुगने के हिसाब से, मुझे 64 खानों के लिए धान दीजिए। मैं इससे अधिक कुछ नहीं चाहता।” पंडित ने कहा।
“तुम भी क्या नादान हो ! मुझे हराकर बस यही चाहते हो ? लगता है, तुम्हें जीतने की उम्मीद नहीं है,” राजा ने कहा।
“जी उम्मीद तो अलग, मैं एक ही खेल में आप को दो बार हरा सकता हूं,” पंडित ने कहा।
“मतलब ?”राजा ने पूछा।
“वह आपको खेल खत्म होने पर पता लग जाएगा,” पंडित ने कहा।
अगले दिन शतरंज के खेल का प्रबंध किया गया। खेल देखने के लिए भीड़ जमा हो गई। सब ने सोचा कि बेचारे पंडित की जान जाएगी। राजा ने खूब डटकर खेला, पर अंत में पंडित जी ही बाजी जीता।
“मैं हार गया हूं। तुम सच में बहुत अच्छे खिलाड़ी हो। पर तुम तो कहते थे कि मुझे दोबारा हराओगे, पर एक ही बार हराया है,” राजा ने कहा।
“पहले आप मुझे मेरा इनाम दिलवाये, फिर आपको दूसरी हार के बारे में बताऊंगा। पंडित ने कहा।
राजा ने सिपाहियों को धान के बोरे लाने के लिए कहा।
“पहले यह तो हिसाब लगाइए कि मुझे कितने बोरे धान देना पड़ेगा ? उस हिसाब के अनुसार धान के बोरे मंगायें जा सकते हैं,” पंडित ने कहा।
राजा ने गणित के पंडितों को बुलाया।
“पहले खाने में कितने दाने रखे जाएं ? गणित के पंडितों ने पूछा।
“एक दाना काफी है,” पंडित ने कहा। राजा पंडित के संतोष को देखकर जरा मुस्कुराया। पहले खाने में एक दाना, दूसरे में दो, तीसरे में चार, इस तरह 64 खानों का हिसाब लगाकर गणित के पंडितों ने यह संख्या बताई।
१८४४६७४४०७३७०९५५१६१५
यह सुनकर राजा हक्का-बक्का रह गया :
“अब यह हिसाब लगाइए कि यह धान कितने बोरों में आ सकेगा,” राजा ने कहा।
गणित के पंडितों ने सेर भर चावल लेकर गिने, और फिर बोरे भर धान का हिसाब लगाकर उन्होंने बताया, “महाराज ! दो लाख वर्षों तक आपको हमारे राज्य में पैदा होने वाले धान को देते रहना होगा। राजा के आश्चर्य की सीमा नहीं रही।
“दूसरी बार हारने का क्या यही मतलब है ?” राजा ने पूछा।
“हां, आप कह रहे थे कि मैं बहुत कम मांग रहा था। अगर मैं हार जाता तो मेरा सिर कट जाता। मैं जीता हूं, पर मेरा मांगा आप दे नहीं सकते,” पंडित ने कहा।
“यह गनीमत है कि खेल में जीत गए हो। हार गए होते तो क्या होता, तुमने इतनी हिम्मत कैसे कि ?” राजा ने पूछा।
“जब आपने मेरे मांगे को देना स्वीकार लिया था, तभी मैं समझ गया था कि आपको गणित का ज्ञान नहीं है। यह सोच कर कि आप जरूर हार जाएंगे, मैंने दांव खेलना शुरू किया था। अगर आप गणित का ज्ञान रखते तो मैं आपसे खेलता ही नहीं,” पंडित ने कहा।
राजा को पंडित के पांडित्य से बहुत संतोष हुआ, और उसको बहुत सा धन – धान देकर विदा किया।
राजा का गर्व भंग हुआ, और वह उस दिन से लेकर सबसे शतरंज खेलने लगा।