संघर्ष का क्या मतलब है और संघर्ष किस प्रकार करना चाहिए, यह बात भी महत्वपूर्ण है। व्यक्ति कोई भी लक्ष्य लेकर उसे पूरा करने के लिए अपने कार्य का निर्धारण करता है। उस निर्धारित किए गए कार्य से जब वह लक्ष्य पूरा नहीं हो पाता है, तो उसे अपने प्रयासों और बढ़ाना पड़ता है। उसके बाद भी लक्ष्य पूरा नहीं होता है, तो कुछ विशेष करने के लिए सोचना पड़ता है। ऐसे निर्णय भी लेने पड़ते हैं, जिनको लेने के लिए मन पहले तैयार नहीं था। यह प्रक्रिया जितनी ज्यादा बार चलती है, उतना ही वह संघर्ष कहलाता है। मन कार्य के प्रति सहज रूप से तैयार हो जाता है, तो संघर्ष का आभास नहीं होता है और मन को तैयार करने में जितनी ज्यादा मशक्कत करनी पड़ती है, उतना ही संघर्ष का आभास ज्यादा होता है।
जो कार्य व्यक्ति की क्षमता में हो, वहां तक कार्य करना भी संघर्ष नहीं कहलाता है, लेकिन जब क्षमताओं को और बढ़ाएं बिना वह कार्य संभव नहीं हो पा रहा हो, तो वह संघर्ष का आभास देता है।
किसी के जीवन में बार-बार ऐसी घटनाएं हो जाती हैं, जिनमें वह अपना काफी कुछ खो देता है। फिर से उसे नया खड़ा करना पड़ता है, वह स्थिति भी संघर्ष पूर्ण स्थिति कहलाती है।
दूसरों के लिए बहुत ज्यादा किया और दूसरों से बहुत कम मिला, इस तरह का आभास भी संघर्ष का अहसास देता है।
संघर्ष बहुत सार्थक है, बहुत जरूरी है, बहुत सहयोगी है, व बहुत उपयोगी भी है, यदि उसका उद्देश्य अच्छा है।
इसीलिए संघर्षपूर्ण की आने पर आपका पहला कदम होना चाहिए, अपने काम का विश्लेषण। यह अति – महत्वपूर्ण कदम है और जो लोग विश्लेषण सही कर लेते हैं, उनकी सफलता को कोई नहीं रोक सकता।
दूसरों की सलाह मान लेने से सफलता को सुनिश्चित नहीं किया जा सकता है। दूसरों की सलाह आपके विश्लेषण का हिस्सा बन सकती है, पर हर पक्ष को आपको अपनी निगाह से देखना है, जांचना है, तुलना करनी है, उसके दूरगामी परिणामों के बारे में सोचना है। इस संबंध में अंतिम निर्णय आपके स्वयं के विश्लेषण से होना चाहिए।
विश्लेषण के पश्चात यदि यह लगता है कि यह कार्य करना चाहिए तो निम्न कदम उठाएं।
सीखना : आपने जो भी करने का निर्णय लिया है, उस कार्य को स्वयं बहुत बेहतर ढंग से सीखने में पूर्ण रुचि लेनी चाहिए। दूसरों के भरोसे सफलता हासिल नहीं की जा सकती है। उस कार्य से संबंधित हर तरह की जानकारी आपको हासिल करनी चाहिए। उसको करने का तरीका आपको पूरी तरह आना चाहिए। सीख- कर करने में कम श्रम में अच्छा फल मिल सकता है और बिना सीखे करने में बहुत सारा श्रम भी व्यर्थ जा सकता है।
संकल्प : यदि आपने विश्लेषण करने के बाद उस कार्य को अपने लिए हर तरह से उपयुक्त पाया है, तो उसके लिए पूर्णत: संकल्पबध्द हो जाएं। बार-बार मन को इधर-उधर ना करें, ताकि आप सतत ऊर्जावान होकर उस कार्य को कर सकें। यह सफलता के लिए अति आवश्यक है। आप का संकल्प पक्का नहीं है, तो कोई भी परिस्थिति आपको विचलित कर सकती है और हर विचलन आपको बहुत पीछे ले जाता है।
योजना : कार्य को बेहतर ढंग से करने के लिए बेहतर योजना बनाएं वह उस योजना पर प्रतिदिन विश्लेषण करते हुए, उसे और अधिक बेहतर बनाते जाएं। योजनाबध्द कार्य का प्रतिफल योजना रहित कार्य के मुकाबले कई गुना ज्यादा होता है।
गलतियों से सीखना : कार्य करते हुए आपसे बहुत से गलतियां भी होंगी, पर उनकी वजह से रुकना नहीं है, उन गलतियों से सीख कर उनकी भरपाई करना है कई बार गलतियों से बड़ा नुकसान भी हो जाता है, और उन्हीं गलतियों से सीखकर बड़ा लाभ भी हासिल किया जा सकता है।
तैयारी : कार्य के लिए भरपूर तैयारी करें। कार्य सफल होगा, तो तैयारी बढ़ा दूंगा। ऐसा सोचेंगे, तो कार्य सफल नहीं होगा। पूर्ण तैयारी से करेंगे तभी कार्य में सफलता हासिल होगी। पूर्ण विश्वास के साथ बेहतरीन तैयारी करेंगे, तो सफल होने की गारंटी रहेगी।
उत्साह : अपने कार्य के प्रति पूर्ण उत्साह होना चाहिए। हर कार्य का परिणाम दूसरों पर निर्भर होता है। दूसरे आपकी बात के प्रति तब सहमत या आकर्षित होंगे जब आप अपनी बात के प्रति स्वयं पूर्ण उत्साहित हों। यदि आप में जरा भी निराशा का भाव है तो दूसरे आपके कार्य के प्रति आकर्षित नहीं होंगे।
संतुलन : कार्य करते हुए अपना संतुलन कभी न बिगड़ने दे। कार्य को इस निति से करें कि कभी आप आर्थिक संकट में ना आ जाएं। साथ ही अपने व्यक्तिगत जीवन का, स्वास्थ्य का, परिवार का, अपने साथ काम कर रहे लोगों का व अपनी साख का हर बात का पूर्ण ख्याल रखते हुए कार्य करें। यह नहीं होना चाहिए कि एक तरफ आगे बढ़ रहे हैं तो दूसरी तरफ पीछे जा रहे हैं। जिंदगी के हर पक्ष में बेहतरी आनी चाहिए। तभी ही आप लंबे समय तक वह कार्य कर पाएंगे।