जीवन में सत्य का आग्रह बुद्धिमानों को होना चाहिए। सत्य जीवन का परम तत्व है। सत्य रहित संसार अपनी कल्पना से बाहर है। अपने जीवन में किसी क्षण सत्य के लिए आग्रही बनने का प्रयत्न करते हुए सामान्य व्यक्ति को भी जब हम देखते हैं या सुनते हैं तो सचमुच सत्य के प्रति सम्मान और बढ़ जाता है, परंतु सत्य को समझना सरल नहीं है। किसी भी समय की बात जब आप सुनेंगे तो उसमें सत्य की महिमा का भारी बखान होगा ही। अरे, आज के समय में भी सत्य का प्रभाव कम नहीं हैं परंतु सत्य किसे कहा जाए ? यह एक अनुत्तरित प्रश्न है।
प्रथम बात यह है कि सत्य हमेशा निरपेक्ष नहीं, सापेक्ष हुआ करता है। किसी भी मंतव्य का जब आगॄह में युक्त “ही” के साथ प्रतिपादन किया जाता है तब वह मंतव्य सत्य की सामान्य मर्यादा का उल्लंघन करता है। सत्य कभी निरपेक्ष नहीं होता, यह त्रिकाल सत्य है। सत्य के स्वरूप को समझने के लिए प्रयत्नशील व्यक्ति को वस्तुमात्र के सापेक्षत्व को जानने हेतु की आंखें खोलनी चाहिए।
आत्मा से लेकर संसार के किसी भी पदार्थ को जब सापेक्ष दृष्टि से देखने समझने का हम प्रयत्न करते हैं तब हमें सत्य तत्व का यथार्थ दर्शन होता है।
इसे ही “स्याद्वाद” शब्द से हम संबोधित कर सकते हैं। स्याद्वाद अर्थात सत्यवाद । सत्य के आग्रही को एकांत दृष्टि नहीं रखनी चाहिए। अनेकांत – सापेक्ष – दृष्टि से जगत मात्र को देखने – जानने को उधत आत्मा सरल, स्वच्छ तथा निरागृही होता है।
सामने वाले के किसी भी मंतव्य को वह आग्रह ही बनाकर खंडित नहीं करता परंतु उसमें रहे हुए आपेक्षिक सत्य को और प्रकट करता है। निरपेक्ष एकांत अंश को दूर कर वह स्याद्वादी बनकर सत्य को ग्रहण करता है।
इस दृष्टि से विचार करते हुए ज्ञात होगा कि सत्य संसार के चराचर प्रत्येक पदार्थ में गूढ रूप से रहा हुआ है। केवल उसे देखने के लिए स्वच्छ दृष्टि चाहिए, तभी सत्यतत्व का दर्शन होगा। ऐसी स्वच्छ दृष्टि आने के बाद जीवन में कदागृह, संकुचितता तथा स्वार्थ भावना उत्पन्न नहीं हो सकती।
राग, द्वेष, भय, ईर्ष्या, असुया, मत्सर, काम, क्रोध इत्यादि आंतरिक त्रिपु सत्यवादी की आत्मा पर प्रभाव नहीं जमा पाते। ‘मेरे तेरे’ का भेद सत्य के ग्राहक को कभी नहीं छू सकता। आकुलता, आवेश और आग्रह तत्वदर्शी में नहीं हो सकते। वाद – विवाद तथा कलह सत्य के जिज्ञासु से दूर रहते हैं। यथार्थ ज्ञाता, दृष्टा बनकर ऐसी आत्मा परमतत्व को प्राप्त करती है। आज आवश्यकता है ऐसे सत्य दर्शन की।