दरअसल जब हम किसी की सेवा करते हैं , चरण – वंदना करते हैं ,चरण दबाते हैं , तो इससे हमारा अहंकार टूटता है । ध्यान रखना – अहंकारी व्यक्ति न तो किसी को प्रणाम करता है और ना ही किसी की व्यक्ति की सेवा । सेवा से अहंकार टूटता है । किसी को नमन करने का अर्थ है – अहंकार से मुक्ति पाना । तुम किसी के हाथ तभी जोड़ सकते हो, जब थोड़ा-सा हम अहंकार छोड़ दो । किसी को साष्टांग प्रणाम तभी कर सकते हो, जब इससे भी ज्यादा अहंकार छोड़ दिया हो, और चरण धोकर गंधोदक ,चरणामृत तभी ले सकते हो जब पूर्णतया अंहकार से मुक्त हो गए हो ।
धर्म की यात्रा अहंकार से मुक्ति की यात्रा है। जैन धर्म का जो मौलिक मंत्र णमोकार है वह पृथ्वी पर दो चार गिने-चुने महत्वपूर्ण मंत्र हैं उनमें से एक है ।णमोकार मंत्र में ‘णमो‘अंहकार अरिहंताणं बाद में है। णमो कहते ही काम का टूटने लगता है और जब अंहकार टूटेगा तभी अरिहंताण अर्थात अरिहंत से साक्षात्कार होगा ।
इस पूरे मंत्र में पांच बार ‘णमो‘ शब्द का प्रयोग है, जो यह दर्शाता है कि पांच बार अहंकार पर चोट की गई है । अंहकार बहुत सख्त है । एक बार की चोट से नहीं टूटता है । इसे तोड़ने के लिए कई चोटों की जरूरत है । इसीलिए णमोकार मंत्र में पांच चोटों के माध्यम से अहंकार को तोड़ने की प्रक्रिया अपनाई गई है । नारियल तो एक-दो चौट से ही टूट जाता है लेकिन अहंकार का नारियल बड़ा मजबूत है।
णमोकार और अंहकार दो विपरीत दिशाएं हैं । जहां अहंकार होगा , वहां णमोकार नहीं हो सकता और जहां णमोकार होगा वहांअंहकार नहीं रह सकता है । पणमोकार का उपासक अहंकारी नहीं होगा और यदि वह अहंकारी है, तो समझना अभी उसने णमोकार के महत्व और मूल्य को समझा नहीं है । अभी णमोकार मंत्र उसके हृदय तक पहुंचा नहीं है।
अंहकार बाधा है।परमात्मा और तुम्हारे बीच एकमात्र अहंकार बाधा है । तुम्हारे और प्रभु के बीच अहंकार ही दीवार है । अगर अहंकार की दीवार ढह जाए तो तुम्हारे लिए प्रभु के द्वार खुल जाएंगे । अंहकार दीवार है और समर्पण द्वार है । समर्पण के द्वार से ही ईश्वरीय दृष्टि मिलती है । अगर अपना सच्चा समर्पण प्रभु को कर दो तो प्रभु प्रकट होने के लिए बाध्य हो जाता है ।