आलस्य है वहां सुख का, निद्रा के साथ विद्या, ममत्व के साथ वैराग्य, आरंभ हिंसा के साथ दयालुता का कोई मेल नहीं होता है। जहां हिंसा है वहां दया नहीं, जहां दया है वहां हिंसा नहीं। जो आरंभ सभारंभ में रुचि रखते हैं उनके दिल में दया नहीं मानी है। जिसके दिल में दया है वही इंसान कहलाने के लायक है दया के बिना इंसान नहीं दानव होता है।
भावनगर के राजा एक बार गर्मियों के दिनों में अपने आम के बागों में आराम कर रहे थे। वह बहुत ही खुश थे कि उनकी बाग में बहुत अच्छे आम लगे थे और ऐसे ही वह अपने ख्यालों में खोए हुए थे। तब वहां से एक गरीब किसान गुजर रहा था, वह बहुत भूखा था, उसका परिवार पिछले दो दिनों से भूखा था तो उसने देखा कि क्या मस्त आम लग हुए हैं, अगर मैं यहां से कुछ आम तोड़कर ले जाऊं तो मेरे परिवार के खाने का बंदोबस्त हो जाएगा।
यह सोचकर उस बाग में घुस गया, उसे पता नहीं था कि उस बाग में भावनगर के राजा आराम कर रहे थे। वह तो चोरी छुपे घुसते ही एक पत्थर उठाकर आम के पेड़ पर लगे आम पर दे मारा। पत्थर पेड़ से टकराकर सीधा राजा जी के सर पर लगा। राजाजी का पूरा सर खून से लथपथ हो गया और वह अचानक हुए हमले से अचंभित थे, और उन्हें यह समझ नहीं आ रहा था कि आखिर उन पर हमला किसने किया। राजा ने अपने सिपाहियों को आवाज दी तो सारे सिपाही दौड़े चले आए और राजाजी का यह हाल देखकर उन्हें लगा कि किसी ने राजा जी पर हमला किया है तो वह बगीचे के चारों तरफ आरोपी को ढूंढने लगे।
इस शोर-शराबे को देखकर गरीब किसान समझ गया कि उससे कुछ गड़बड़ हो गई है। वह डर के मारे भागने लगा, सिपाहियों ने जैसे ही गरीब किसान को भागते देखा तो वे सब भी उसके पीछे भागने लगे, उसे दबोच लिया, उस गरीब किसान को सिपाहियों ने पकड़कर कारागार में डाल दिया। उसको दूसरे दिन दरबार में पेश किया, दरबार पूरा भरा हुआ था और सब को यह मालूम हो चुका था कि इस इंसान पर राजाजी को पत्थर मारा, सब बहुत गुस्से में थे, सोच रहे थे कि इस गुनाह के लिए उसे मृत्युदंड मिलना ही चाहिए।
सिपाहियों ने उस गरीब किसान को दरबार में पेश किया और राजा ने उससे सवाल किया कि तूने मुझ पर हमला क्यों किया ?
गरीब किसान डरते – डरते बोला माई बाप मैंने आप पर हमला नहीं किया है, मैं तो सिर्फ आम लेने आया था। मैं और मेरा परिवार पिछले दो दिनों से भूखे थे, इसलिए मुझे लगा कि यहां से कुछ फल मिल जाए तो मैं और मेरे परिवार की भूख मिट सकेंगी। यह सोचकर वह पत्थर मैंने आम के पेड़ पर मारा था, मुझे पता नहीं था कि आप उस पेड़ के नीचे आराम कर रहे थे, वह पत्थर आपको लग गया ।
यह सुनकर सभी दरबारी बोलने लगे – अरे मूर्ख ! तुझे क्या पता है तूने कितनी बड़ी भूल की है, तूने इतने बड़े राजा के सर पर पत्थर मारा है। अब देख क्या हाल होता है तेरा। राजाजी ने सभी दरबारियों को शांत रहने को कहा। वे बोले ! भला अगर कोई एक पेड़ पर पत्थर मारता है, तो वह उसे फल देता है, मैं तो भावनगर का राजा हूं इसे दंड कैसे दे सकता हूं।
अगर एक पेड़ पत्थर खा कर कुछ देता है, तो मैंने भी पत्थर खाया है, तो मेरा भी फर्ज है कि मैं भी इस गरीब किसान को कुछ दूं ।उन्होंने अपने मंत्री को आदेश दिया कि जाओ और हमारे अनाज के भंडार से इस इंसान को पूरे साल का अनाज दे दो।
यह फैसला सुनकर सभी दरबारी चकित हो उठे , उन्हें तो लग रहा था कि इसे दंड मिलेगा। लेकिन राजा जी की दया, प्रेम और न्याय देखकर सभी दरबारी राजाजी के प्रशंसक बन गये ।
बहुत गरीब किसान भी राजा जी की दया और उदारता देखकर अपने आंसू नहीं रोक पाया और भावनात्मक होकर राजाजी के सामने झुक कर कहने लगा धन्यवाद है इस भावनगर के जिसे इतना परोपकारी राजा मिला और पूरे देश में राजा का जयकारा गूंजने लगा।
यह एक सत्य घटना है।
कैसे होंगे वो राजाजी जिन्होंने पत्थर खाकर भी एक गरीब व्यक्ति की पीड़ा व्यथा को समझ पाए, उनके दर्द जी पाए, उसकी मदद कर पाए।
धन्य है भावनगर के राजाजी।