मुंह पर झुर्रियां,
कानों में बहरापन,
आंखों में धुंधलापन,
पांवों में शिथिलता,
पाचनशक्ति कमजोर,
बाल सफेद एवं दांत गायब !
यह सब वृद्धत्व की निशानी है
ऐसा हम मानते हैं,
पर यहां तो वृद्धत्व को एक अलग ही नजरिए से देखा गया है –
नया – नया सीखते रहने के तुम्हारे उत्साह का वाष्पीकरण हो गया है तो निश्चित समझ लेना कि तुम वृद्ध हो गए हो।
संक्षिप्त में,
शिथिल अंगोपांग,
यह शरीर का वृद्धत्व है
पर शिथिल उत्साह,
यह तो मन का वृद्धत्व है।
शरीर के वृद्धत्व को चक्रवर्ती भी नहीं रोक सकते,
पर मन के वृद्धत्व को यदि हम रोकना चाहते हैं तो इसमें हमें शत-प्रतिशत सफलता मिल सकती है।
परंतु विडंबना यह है कि शरीर के वृद्धत्व की घोषणा करने वाले बाल सफेद हो जाते हैं तो हम उन्हें काले करवाने के प्रयत्नों में लग जाते हैं।
कानों में बहरापन आ जाता है तो मशीन लगा लेते हैं।
अंगोंपांग शिथिल होने लगते हैं तो शक्ति- वर्धक दवाइयां लेने लगते हैं।
और इन सब के बावजूद वृद्धत्व का शिकार बनकर ही रहता है।
पर मन के वृद्धत्व, जिसे हम निश्चित रूप से चुनौती दे सकते हैं,
जीवन के अंत समय तक जिसके शिकार बनने से बच सकते हैं उसे चुनौती देने के मामले में उदासीन बन गये हैं।
याद रखना,
जिसे नाचना आता है,
उसे गाने की आवश्यकता नहीं है।
जिसे गाना आता है उसे बीच में बोलने की आवश्यकता नहीं है,
परंतु जिसे अच्छा बोलना सीखना है और अच्छा जीना सीखना है उसे नया – नया सीखते रहने की और उसके लिए नया-नया पढ़ते रहने की विशेष रूप से आवश्यकता है।
यद्यपि,
नया – नया सीखते रहना और नया – नया पढ़ते रहना, इतना ही पर्याप्त नहीं है।
नया सीखने से पहले और नया पढ़ने से पहले विवेक को उपस्थित रखना अत्यंत आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य भी है।
और एक अंतिम बात,
जो सिखाती है, उसका नाम शिक्षा हैं।
जो संस्कारित करता है, उसका नाम है संस्करण है।
हमें सीखना ही नहीं है, संस्कारी भी बनना है।