नशा शराब का ही नहीं होता है रूपये और पैसे का अंहकार का भी होता है। शराब का नशा तो झट दिख जाता है और वह बुरा भी माना जाता है मगर अहंकार का नशा जल्दी से नहीं दिखता। एक बात और अगर दुनिया में शराब न होती तो संसार का नक्शा कुछ और ही होता।
युनानी तत्त्ववेत्ता डायोजनीज को पार्टी में एक धनपति ने बढ़िया शराब की बोतल भेंट की। डायोजनीज ने उस शराब को गौर से देखा और फिर मिट्टी में उलट दी।
धनपति ने आश्चर्य से पूछा – महाशय ! मैंने आपको इतनी बढ़िया और कीमती शराब भेंट की और आपने उसे मिट्टी में मिला दिया। आखिर क्यों ? डायोजनीज ने कहा – श्रीमान ! अगर मैं इस शराब को मिट्टी में ना मिलाता तो फिर यह मुझे मिट्टी में मिला देती। डायोजनीज बोला – मैंने अपनी इसी जिंदगी में ऐसे सैकड़ों लोगों को देखा है जिनको शराब ने मिट्टी में मिला दिया। शराब खराब है। शराब जहर है। शराब मौत है।
तो बात अहंकार के नशे की है। अहंकारी का नशा तो वैसा ही होता है जैसे कोई घंटाघर पर बैठा हुआ बंदर घंटाघर की ऊंचाई को अपनी ऊंचाई मानने लगता है। आदमी बहुत अकडता है। वह भूल जाता है कि मौत का भी एक दिन है।
तुम भूल ही गए हो की मौत द्वार पर खड़ी है कि शरीर मिट्टी का घड़ा है और मिट्टी का घड़ा है तो सुबह या शाम फूटना तो तय है ही। इसीलिए यह घड़ा फूटे इससे पहले जीवन की घड़ियों को सार्थक बना लो। जिंदगी बहुत क्षणिक है।
पानी पर खींची लकीर जैसा है जीवन। पानी पर लकीर खींच भी नहीं पाते और लकीर मिट जाती है। तुम्हारे शरीर की हैसियत एक मुट्ठी राख से ज्यादा नहीं है।