रामायण का एक प्रसंग है – राम और सीता चित्रकूट में बैठे हैं। बैठे-बैठे राम ने कहा – सीते ! देखो मेरी चरण कितनी सुंदर है । सीता बोली – प्रभु ! लेकिन मेरे चरण तो आप से भी सुंदर है। राम बोले – नहीं, मेरे चरण ज्यादा सुंदर है। सीता बोली – नहीं ,भगवान ! मेरे चरण आप से भी ज्यादा सुंदर है क्योंकि आपके चरण तो श्याम है और मेरे गोरे हैं । सीता का अपना तर्क था। राम – सीता दोनों में संवाद छिड़ गया । विवाद नहीं, संवाद। विवाद तो दो अज्ञानियों के बीच होता है जबकि संवाद दो ज्ञानियों में होता है । बुद्धि से बुद्धि टकराती है विवाद होता है और हृदय से हृदय मिलता है तो संवाद होता है। संवाद की एक विशेषता है कि संवाद में दोनों में कोई नहीं हारता, दोनों ही जीत जाते हैं ,तथा विवाद की भी एक विशेषता है कि दोनों में से कोई नहीं जीतता, दोनों ही हार जाते हैं । अंहकारी का विवादी होता है । सीता और राम के मध्य यहां विवाद नहीं, संवाद हो रहा है।
सीताने कहा – भगवान ! मेरी चरण आपसे ज्यादा सुंदर है क्योंकि आपके श्याम हैं और मेरे गोरे हैं। दोनों में संवाद छिड़ गया । इस बीच वहां कहीं से लक्ष्मण घूमते- घामते आ गए । लक्ष्मण ने पूछा – भैया ! आखिर बात क्या है ? राम ने पूरी बात बताई और कहा – तू हमारा न्यायाधीश है । जल्दी से बता और निर्णय दे कि दोनों में से किस के चरण सुंदर हैं ।
लक्ष्मण तो यह सुनकर धर्म संकट में पड़ गया। सोचने लगा भैया – भाभी के झगड़े में मेरा क्या काम । मां – बाप के झगड़े में बच्चों का क्या काम ?
राम बोले – नहीं, निर्णय तुम्हें ही करना है। लक्ष्मण परेशान कि यदि प्रभु के चरण सुंदर बताता हूं तो सीता मैया को कष्ट होगा और यदि सीता मैया के बताता हूं तो प्रभु को दु:ख होगा। धर्म संकट के क्षणों में लक्ष्मण ने जैन धर्म के मौलिक सिद्धांत अनेकांत और स्याद्वाद का सहारा लिया और समाधान खोजने को तत्पर हुए।
लक्ष्मण ने राम और सीता का एक- एक चरण अपने हाथ में लिया तथा गौर से देखा और बोले – सीता मैया के चरण सुंदर है । यह सुनकर सीता बड़ी प्रसन्न हुई। बोली – देखा प्रभु ! मैंने तो पहले ही कहा था कि मेरे चरण ज्यादा सुंदर है। लक्ष्मण बोले – मां ! पूरी बात तो सुनो आप तो आधी अधूरी बात सुन नाच उठीं।
लक्ष्मण कहते हैं – मां ! आपको पता है कि आपके चरण सुंदर क्यों हैं ? सीता बोली : नहीं, मुझे तो नहीं पता । लक्ष्मण बोले : मां ! आपके चरण इसलिए सुंदर हैं क्योंकि आप प्रभु के चरणों का अनुगमन करती हैं । यह सुनकर राम प्रसन्न हो गए। बोले : देखा, मैंने तो पहले ही कहा था कि मेरे चरण सुंदर है । तभी लक्ष्मण बोले – भगवान ! आप भी आधी – अधूरी बात सुनकर प्रसन्न हो गए। राम ने कहा : अब क्या बाकी है । भाई ? लक्ष्मण बोले – अभी बहुत बाकी है । लक्ष्मण ने राम से पूछा – भगवान! आपको मालूम है, आपके चरण सुंदर क्यों है ?राम ने कहा – नहीं, मुझे तो नहीं मालूम । लक्ष्मण ने कहा – प्रभु! आपके चरण नहीं, अपितु आपका आचरण सुंदर है और आपका आचरण सुदंर है इसीलिए आपके चरण सुदंर है।
यह जीवन का एक सूत्र है – मनुष्य का आचरण पूजा जाता है, चरण पूजा के बहाने।