एक बार एक शिष्य ने गुरु से पूछा – गुरुजी ! विवाह करना कितना आवश्यक है । जरा आप मुझे बताइए
गुरु जी ने कहा – ध्यान रखना – विवाह सर्वथा अछूत नहीं है । माना कि संसार कीचड़ है लेकिन ध्यान रखें, इसी कीचड़ में कमल खिलता है। दुनिया के अधिकतर महापुरुष, तीर्थंकर – पुरुष विवाहित थे। भारतीय संस्कृति में गृहस्थ जीवन को भी आश्रम का दर्जा दिया गया है । भारतीय मनीषा शुरू से ही इस बात की पक्षधर रही है कि जो लोग अपनी उर्जा को पूरी तरह से ध्यान – समाधि में नहीं लगा सकते, ऊर्जा का ऊध्वारोहण नहीं कर सकते वे लोग गृहस्थ जीवन में प्रवेश कर धर्म का निर्वाह करें। काम में भी राम की तलाश जारी रखें ,कीचड़ में कमल की साधना करें । कमल का कीचड़ में रहना और मनुष्य का संसार में रहना बुरा नहीं है । बुराई तो यह है कि कीचड़ कमल पर चढ़ आये और संसार हृदय में समा जाए । तुम कमल हो, तुम्हारा परिवार कमल की पंखुड़ियां है तथा संसार कीचड़ हैं। कीचड़ में कमल की तरह जी सके तो गृहस्थआश्रम भी किसी तपोवन से कम महत्वपूर्ण नहीं है।
सभी कमल कीचड़ में ही खिलते हैं।
राम ,कृष्ण, बुद्ध, महावीर इसी कीचड़ में खिले ।आचार्य कुंदकुंद – जिनसेन इसी कीचड़ में खिले लेकिन यह कीचड़ में कीड़े की तरह नहीं जिए, अपितु कमल की तरह निर्लिप्त होकर जिए ।
ज्ञानी और अज्ञानी में यही तो अंतर है कि जो कीचड़ में कमल की तरह जीता है वह ज्ञानी है और जो कीचड़ में कीड़े की तरह जीता है, वह अज्ञानी है।
संसार कीचड़ है यह कह कर इसे ठुकरा मत देना वरना कमल के खिलने की संभावना खत्म हो जाएगी । संसार कीचड़ है – इसीलिए इसलिए इसे दुत्कार मत देना वरना जीवन के सत्य से वंचित रह जाओगे । संसार कहां नहीं है ? पूरब- पश्चिम ,उत्तर – दक्षिण सब दिशाओं में तो संसार है वह तो दूर-दूर तक फैला है । संसार से भागना नहीं है । भाग कर जाओगे भी कहा ? क्योंकि संसार से बाहर कुछ भी नहीं है, और तो और मोक्ष भी संसार में ही है।
यह बात अलग है कि मोक्ष संसार नहीं है। इसीलिए मैंने कहा है कि संसार से भागना नहीं अपितु जागना है। जागरण ही जीवन है। जिन्होंने भी पाया है, जागकर ही पाया है ,जो भी पहुंचा है, जाग कर ही पहुंचा है।
शिष्य गुरु जी से ज्ञान पाकर तृप्त हो गया, उसकी सारी शंकाओं का समाधान हो गया, वह संसार में आसक्त होने की बजाय विरक्त हो गया ।
संसार रूपी कीचड़ को समझे और इसमें कमल की भांति खिले यही जीवन का सार है।