आशा ही दु:खदाई नहीं है ,चिंता भी दु:खदाई है ।
आज का आदमी चिंतन में नहीं, चिंता में जी रहा है ।चिंता चिता समान है। चिंताओं को उगल डालिए। चिंता जहर है, इससे दूर रहिए। चिंताओं को उगलने का एक सरल मार्ग तो यह है कि आप तमाम चिंताओं को लिख डालें और फिर उन्हें गौर से देखें तो सब चिंता ही निराधार लगेगी ।
चिंताओं से मुक्त होने का एक और रास्ता है।
आप अपने निकटतम मित्र के पास बैठिए और मन की सारी चिंताएं उससे कह डालिए। इससे आपका दिल हल्का हो जाएगा। यह मत सोचिए जिसको आप अपनी चिंताएं बता रहे हैं, वह आप की खिल्ली उड़ाएगा और अगर खिली उड़ाता भी है तो उड़ाने दीजिए। खिल्ली भले ही उड़ जाए मगर चिंता मत पालिए। चिंता खिल्ली उडने से भी ज्यादा बुरी है। अपनी मन की बात कहने के लिए कोई न मिलता हो तो मंदिर ,मस्जिद, गुरुद्वारा और चर्च में जाकर अपने ईश्वर, आराध्य को सुना डालिए।
श्री चरणों में सारी चिंताओं को डाल आइए। हर हाल में चिंताओं से अपने को दूर रखिए। चिंताएं तुम्हारे सिर पर बैठ गई तो फिर वह तुम्हें कभी खड़ा नहीं होने देंगी। चिंता भी एक खतरनाक रोग है।