स्वामी रामतीर्थ के विषय में कहा जाता है कि जब कोई उन्हें प्रणाम करने के लिए, नमन करने के लिए आगे बढ़ता, तो वे चार कदम पीछे हट जाते और उससे कहते, भाई! ठहरो, रुक जाओ, इतनी जल्दी मत करो। नमन करने में इतनी शीघ्रता मत करो। पहले मेरे विषय में अच्छी तरह जान लो कि मैं प्रणाम करने के लायक हूं या नहीं। दूसरों की सुनी – सुनाई बातों में आकर एकदम से प्रणाम मत करो। दूसरे प्रणाम कर रहे हैं इसीलिए तुम मत करो। पहले मेरे विषय में अच्छी तरह जांच – पड़ताल कर लो कि मैं प्रणाम के काबिल हूं या नहीं। मेरा चरित्र कैसा है ? मेरे पास – पड़ोस वालों से थोड़ा इस विषय में पूछ लो। मेरी परछाई से मेरे बारे में थोड़ी – सी जानकारी हासिल कर लो कि मैं क्या हूं ? कि मैं गुरु बनाने के योग्य हूं या नहीं ?
तो वह पीछे हट जाते, कहते – इतनी जल्दी मत करो। अभी तो मैं जिंदा हूं, दो-चार दिन तो जीऊंगा ही। वह कहते – किसी को गुरु बनाने से पहले, संत मानने से पहले अच्छी तरह सोच विचार लो, जांच – परख लो और फिर यदि एक बार श्रद्धा से सिर झुका दिया, गुरु स्वीकार कर लिया तो फिर कभी उसकी आलोचना मत करना, फिर कभी उसकी बुराई मत करना, फिर उसके ही इशारों पर चलना, फिर कभी उस से तर्क मत करना, फिर कभी अपनी बुद्धि का और अपना दिमाग मत लगाना। फिर वह कहे ‘यूं’ तुम ‘क्यूं’ मत करना वरना मामला खटाई में पड़ जाएगा। वह कहे ‘यूं’ तो तुम कहना ‘हूं’ तभी तुम्हें मंजिल मिलेगी।