भारतीय संस्कृति में गणेश जी की उपासना प्राचीन काल से ही होती आ रही है। किसी भी कार्य के प्रारंभ में सर्वप्रथम गणेश जी की पूजा की जाती है। उन्हें गणपति गणनायक की पदवी प्राप्त है।
अध्यात्म के विभिन्न क्षेत्रों में हिंदू धर्म की अनेक शाखाओं में गणेशजी पूज्य और अतिशय प्रभाव संपन्न देवता स्वीकृत है। उन्हें विद्या, बुद्धि का प्रदाता, विघ्नविनाशक, मंगलकारी, रक्षाकारक और सिद्धिदायक माना जाता है। जो मनुष्य विद्यारंभ, विवाह, ग्रहप्रवेश, यात्रा, संग्राम तथा संकट के अवसर पर श्री गणेश जी की महामंत्र एवं बारह नामों का नित्य जाप करता है उसके कार्यों में कभी विध्न नहीं पड़ता हैं।
जो व्यक्ति “ॐ गं गणपतये नमः” महा मंत्र का प्रतिदिन प्रात: काल उठने के साथ ही मौनव्रत धारण कर सर्वप्रथम ३१ बार जाप करता है, उसका हर दिन उत्तम एवं उल्लास से भरा होता है व आने वाले विध्न स्वत: ही नष्ट हो जाते हैं, इसी प्रकार “श्री हरिद्रागणेश यंत्र” ( ताम्रपत्र पर अंकित ) का भी विशेष महत्व है। इसे पूजा के स्थान पर रखकर प्रतिदिन धूप दीप के साथ पूजा एवं दर्शन से मनुष्य की मनोकामनाएं पूर्ण होती है। साथ ही यह यंत्र पूर्व – पश्चिम, उत्तर – दक्षिण एवं अन्य दिशाओं में विद्यमान देवी देवताओं के स्थान को भी इंगित करता है जिसके माध्यम से हम अपने इष्टदेव की आराधना सही दिशा में खड़े होकर कर सकते हैं।
विघ्न विनाशक, संकट मोचन, बुद्धि विधाता श्री गणेश जी के बारह नामों वक्रतुंड ( टेढे मुख वाले ), एकदंत ( एक दांत वाले ), कृष्ण पिंगाक्ष ( काली एवं भूरी आंख वाले ), गजवकृ ( हाथी के मुख वाले ), लंबोदर ( बड़े पेट वाले ), विकटनांव ( विकराल ), विघ्न राजेंद्र ( विध्नों पर शासन करने वाले राजाधिराज ), धूम्रवर्ण ( धूसर वर्ण वाले ), भालचंद्र ( जिनके ललाट पर चंद्रमा सुशोभित है ), विनायक, गणपति और गजानन का तीनों संध्याओं प्रात: मध्यान्ह एंव सायं में प्रतिदिन स्मरण या श्रवण करता है, उसे इसी प्रकार के विघ्न का भय नहीं रहता एवं उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
राजा नल एवं दमयंती के पुन: मिलन में भी गणेश जी की स्तुति का विशेष महत्व रहा है। ऐसा कहा जाता है कि पूर्व काल में राजा नल अपनी प्रतिकूल दशाओं के कारण अपने राज – पाट एवं रानी दमयंती से विमुख हो गए थे। उस समय रानी दमयंती ने श्री गणेश जी की स्तुति पूरी श्रद्धा एवं भक्ति के साथ की जिसके प्रभाव से राजा नल एवं दमयंती का पुनर्मिलन हुआ। एवं सारा राज – पाट उन्हें प्राप्त हो गया।
गणेश स्तुति द्वारा कार्य – सिद्धि के अचूक तं
पुष्प तंत्र : श्वेत आक का पुष्प भगवान गणेश्वर को अति प्रिय है जो कि सर्वविदित है। किसी भी बुधवार को प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर श्वेत आक का पुष्प पूर्ण श्रद्धा के साथ श्री गणेश जी को अर्पण करें तथा किसी भी विशेष कार्य को करने से पूर्व कार्य का विवरण श्री गणेश जी से कहते हुए पुष्प स्वच्छ लाल कपड़े में रखकर अपने साथ अमुक कार्य को करते समय रखें। निश्चित ही सफलता प्राप्त होगी।
सूत यंत्र : इस प्रयोग मैं मौन व्रत धारण का अधिक महत्व है। किसी भी बुधवार के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नानादि से निवृत्त होकर अपने मकान की छत पर या अन्य किसी स्वच्छ एवं खुले स्थान में कच्चा सूत ( एक दो हाथ ) लेकर जाएं एवं पूर्व दिशा की ओर अपना मुख रखकर मन ही मन श्री गणेश जी का ध्यान कर अपने कार्य को उनसे कहें कि मेरा अमुक कार्य है आप उसे संभाले और शुद्ध मन से सूत पर एक गठान “ॐ गं गणपतये नमः” मंत्र में कुल सात बार गठान लगाकर सूत का पांच बार उच्चारण करके लगाएं। इसी प्रकार सूत को नमस्कार कर के अपने साथ रख कर अमुक कार्य के लिए प्रस्थान करें, निश्चित ही आपको कार्य में सफलता मिलेगी।