इच्छा मत करना । इच्छा दु:खदाई है। आशा बहुत भटकाती है। आशा बहुत दौड़ाती है। सारी दुनिया आशा के खातिर दौड़ती नजर आती है। एक आदमी सोचता है मेरे पास दस हजार रुपए हो जाए तो मैं सुखी हो जाऊंगा और यदि उसके पास दस हजार रुपए हो जाते हैं तो वह सुखी नहीं होता है। क्योंकि उसमें अब एक नई आशा पैदा हो गई। दस हजार से क्या होगा ? कम से कम लाख तो होना ही चाहिए। अब वह लाख के लिए भागेगा। पहले दस हजार रुपए के लिए भाग रहा था रहा था, अब वह लाख रुपए के लिए भाग रहा है। सोच रहा है कि कहीं से भी और किसी भी तरह एक लाख रुपए हो जाए तो सब ठीक हो जाए और यदि पुण्य योग से लाख रुपए हो भी गए तो कुछ भी ठीक नहीं होने वाला,क्योंकि फिर वही आशा कहेगी कि जब लाख रुपए हो सकते हैं तो दस लाख रुपए भी हो सकते हैं।
महंगाई के जमाने में लाख रुपए होते भी क्या है ? आजकल लाख रुपए वाली की पूछी क्या है ? महंगाई का जमाना है। महंगाई तेजी से बढ़ रही है और इस महंगाई के युग में लाख रुपए क्या मायने रखते हैं ? महंगाई दिन – दूनी, रात – चौगुनी बढ़ रही है इसीलिए लाख से काम नहीं चलेगा। कम से कम दस लाख रुपए तो होना ही चाहिए।
सभी चीजों की कीमत बढ़ रही है सिवाय आदमी के। आदमी सस्ता हो गया है। आदमी की जान सस्ती हो गई। आज के युग में सबसे सस्ता आदमी है। आदमी की कोई वैल्यू नहीं। उसे कोई भी नहीं पूछता। आदमी बहुत जल्दी बिक जाता है।
दस लाख रुपए की वासना पैदा हो गई। तय कर लिया कि जब तक दस लाख रुपए नहीं होंगे, तब तक मैं चैन से नहीं बैठूंगा और शुरू हो गई एक अंधी दौड़। दौड़ जारी है। ना दिन में चैन, ना रात में आराम। और मान लो दस लाख रुपए भी हो गए तो क्या अब सब ठीक हो गया ? सारे दु:ख खत्म हो गए ? अंधी दौड़ बंद हो गई। जी नहीं, जनाब। फिर वहीं के वहीं। मन ने कहा – दस लाख ? क्या होता है दस लाख से ? एक ढंग का मकान भी नहीं आता । दस लाख में आता क्या है ? आज लखपति को पूछता कौन है । जमाना करोड़पति का है। “कौन बनेगा करोड़पति” “सवाल दस करोड़” का “छप्पर फाड़ के”जहां भी देखो सुनो करोड़ से नीचे की तो बात ही नहीं हो रही है।
फिर एक वासना और पैदा हो गई। करोड़पति बनना है और फिर वही दंद – फंद शुरू। फिर वही भागमभाग शुरू। पहले तुम सोचते थे कि दस हजार हो जाए तो सुखी हो जाऊंगा पर कुछ नहीं हुआ। दस लाख हो गए तब भी कुछ ठीक नहीं हुआ। बल्कि जो ठीक था, वह भी गड़बड़ हो गया। पहले जो कुछ घर परिवार में सुख – शांति थी, वह भी जाती रही। जो प्रेम और प्यार था, वह भी जाता रहा। सुविधाएं तो थोड़ी सी बढ़ गई पर सुख जाता रहा। तन का आराम बढ़ गया, पर मन की शांति जाती रही।
नोट बड़ी खतरनाक चीज है। दुनिया की सारी संक्रामक बीमारियां इसी नोट की वजह से फैलती है और पनपती है क्योंकि यह नोट सैकड़ों – हजारों गलत अपराधियों और पापियों के हाथ से गुजरते – गुजरते तुम्हारे जैसे शरीफ आदमी के पास आता है तो अपने साथ सैकड़ों बुराइयों और रोगों को साथ लेकर आता है तभी तो आदमी रुपया – पैसा के आते ही बदल जाता है। उसका उठना – बैठना, बोलना – चालना, हाव-भाव सब कुछ बदल जाता है।
तो करोड़पति बनने की वासना पैदा हुई और चलो लो यह बन गए करोड़पति। अब क्या क्या ? सब ठीक हो गया ? सब कुछ ठीक नहीं हुआ। फिर मन ने कहा कि करोड़ नहीं, अरब रुपए होना चाहिए। तो आशा हमेशा दौड़ती है। आशा से ही आकाश टंगा है। आशा आकाश की तरह असीम है।