असली समस्या मन है। इंद्रियां तो केवल स्विच है, मेन-स्विच तो मन ही है। जब कभी भी कोई विश्वामित्र अपनी तपस्या और साधना से फिसलता और गिरता है तो इसके लिए दोष हमेशा मेनका को दिया जाता है जबकि दोष ‘मेनका’का नहीं, आदमी के ‘मन- का ‘है कोई भी आदमी मेनका के आकर्षण की वजह से नहीं, अपितु अपने मन की कमजोरी की वजह से गिरता है। मन बड़ा खतरनाक है। दुनिया से 10 चीजें चंचल है
दस मकार चंचल है।
आदमी का मन , मधुकर (भंवरा ),मेघ, मानिनी (स्त्री ),मदन (कामदेव), मरुत (हवा) मर्कट (बंदर), मां (लक्ष्मी), मद (अभिमान), मत्स्य – यह दस चीजें दुनिया में चंचल है, और इनमें भी आदमी का मन सर्वाधिक चंचल है।
इस मन को समझना, समझाना बडी टेढ़ी खीर है। पल- पल में बदलता है, क्षण- क्षण में फिसलता है । एक पल में एवरेस्ट की चोटी पर चढ़ जाता है और अगले ही पल बंगाल की खाड़ी में उतर जाता है। आदमी का मन चंचल है। मन हमेशा नशे में रहता है । मन पर कई तरह का नशा चढ़ा है पद का नशा, ज्ञान का नशा, पैसे का नशा, प्रतिष्ठा का नशा, शक्ति का नशा, रूप का नशा, इस तरह दुनिया में सैकड़ों तरह के नशे है। जो मानव मन पर सवार हैं । इस मन पर अगर अब तक कोई नशा नहीं चढ़ा है ,तो प्रभु का नशा ,मुक्ति का नशा नहीं चढ़ा है। भक्ति का भी नशा होता है, यह नशा या तो किसी पर चढ़ता नहीं है और चढ जाए तो फिर उतरता नहीं है।
आदिशंकराचार्य मनुष्य जीवन का चित्रण कर रहे हैं।
वे कह रहे है – अंग-अंग गल गये, बाल – बाल पक गए, दांत टूट गए, भाग्य रूठ गए ,संगी- साथी छूट गए, फिर भी आशाएं जिंदा है, आकांक्षाएं जिवित है । आंखों की चमक जाती रही , चहरे की लालिमा खो गई , तन थक गया, शरीर बूढ़ा हो गया, मगर मन अभी भी व्याकुल है, पागल है ।
सच्चाई को समझिए।
आदमी का तन तो बूढ़ा हो गया मगर मन अभी भी जवान है, मन कभी बूढ़ा नहीं होता। तन बूढ़ा हो जाता है। इंद्रियां बूढ़ी हो जाती है । जीवन बूढ़ा हो जाता है मगर आदमी का मन कभी बूढ़ा नहीं होता। कामनाएं और वासनाएं कभी बूढी नहीं होती। और जिसका मन जवान होता है उसको नौजवान बनने में देर नहीं लगती है।
जिसका मन बूढ़ा हो जाता है उसके जीवन में संन्यास घटित हो जाता है । जिसकी कामनाएं और वासनाएं मर जाए फिर वह आदमी दुनिया में कभी नहीं मरता । ऐसा आदमी राम, कृष्ण, बुद्ध और महावीर की तरह अमर है ।
दुनियां में केवल वे मरते हैं जो अपने मन को नहीं मार पाते हैं।