आचारांग सूत्र का पांचवां”धूताख्यान”नामक अध्ययन में प्रभु महावीर ने कर्मों को विधूनन अर्थात कर्मों को क्षय करने का उपदेश दिया है। जैसे कोई वृक्ष सर्दी, गर्मी, कंपन, शाखा छेदन उपद्रव को सहन करता हुआ कर्म के अधीन होने के कारण अपने स्थान को नहीं छोड़ सकता। इसी प्रकार आत्मा कर्मों से भारी होती है, उन्हें धर्म करने के लिए योग्य सामग्री मिले तो भी वे नहीं कर सकते तथा शारीरिक, मानसिक दु:खों को सहन करने पर भी विषयभोगों तथा कषायों को नहीं छोड़ सकते। इसका एकमात्र कारण है “कर्म”।
कर्म ही इस पूरे संसार को ऑपरेट करते हैं। कर्मों से ही व्यक्ति की पहचान होती है, कपड़ों से नहीं। क्योंकि अच्छे कपड़े तो ‘डमी’ को भी पहनाये जाते हैं। इसीलिए व्यक्ति जैसे कर्म करता है वैसा ही उसे फल मिलता है। जैसा सप्लाई वैसा रिप्लाई जिस प्रकार कोई व्यक्ति जैसी रिकॉर्डिंग करता है वैसा ही सुनाई देता है। अगर कर्कश आवाज करेगा तो वही सुनाई देगा तथा मीठे वचन करेगा तो वैसा ही सुनाई देगा। उसी प्रकार शुभ कर्मों का फल भी शुभ मिलेगा तथा अशुभ कर्मों का फल भी अशुभ हीं मिलेगा। इसीलिए प्रभु बता रहे हैं अशुभ कर्म के कारणभूत विषय भोगों का त्याग करो तथा योग को अपनाओ।
दो दिशाएं होती है – १- भोग
२- योग
जिस प्रकार नदी रेगिस्तान की ओर भी जाती है तथा समुद्र की ओर भी। परंतु नदी रेगिस्तान में मिलेगी तो विनाश होगा तथा समुद्र में मिलेगी तो विकास होगा। उसी प्रकार जो व्यक्ति भोगों में लीन होता है उसका विनाश होता है तथा योगों में लीन होता है तो विकास होता है। परंतु आज व्यक्ति का विकास कम विनाश ज्यादा हो रहा है। इसके तीन कारण है।
१ – ENVIRONMENT ( वातावरण ) :- आज वातावरण इतना बदल गया कि पूरा कल्चर ही चेंज हो गया है। पहले धर्म कम था, पाप भी कम था। आज धर्म बढा लेकिन पाप उससे भी कई गुना ज्यादा बढ़ गया। क्योंकि आज का व्यक्ति अधिक साधनों को जुटाने के लिए प्रयासरत है। वर्तमान समय में साधन इतने बढ़ गए कि भोजन, पानी, वस्त्र आदि अनेक चीजों पर इनका गलत असर पड़ रहा है।
१ – पूर्व के समय में हर चीज सीजनल मिलती थी, आम (गर्मी में) ड्राय फ्रूट्स (ठंड में) भुट्टे (बरसात में) आदि।
वर्तमान समय में स्टोरेज मशीनों के द्वारा हर समय हर चीज उपलब्ध होती है।
२ – प्रिर्जवेटीव के true उसको भी महीनों सलामत रखा जा रहा है।
३ – विदेशों में रोटी भी रेडीमेड मिलती है चाहे तो आठ – दस दिन की इकट्ठी लेकर आए।
४ – वस्त्र संबंधी बात करें तो पहले धोती, कुर्ता, साड़ी, सूट पहनना पसंद करते थे, आज की युवा पीढ़ी जींस, कैपरी, जमसूट, प्लाजो आदि वेस्टर्न पहनावा पसंद करते हैं।
५ – भोजन भी शुद्ध और सात्विक होता था, अब लोग होटल, कैफे, रेस्टोरेंट जाना पसंद करते हैं।
६ – पूर्व के समय में किसी से बात करनी हो तो पत्र भेजे जाते थे, वर्तमान में ईमेल, व्हाट्सएप, जैसे कई मैसेंजर के द्वारा संदेश भेजा जाता है। इस प्रकार मानव ने पूरे वातावरण पूरी विनाशकारी बना दिया है।
२ – ENTERTAINMENT ( मनोरंजन ) :- पहले व्यक्तियों को अपना माइंड फ्रेश करना हो तो महापुरुषों की कथाएं पढ़कर थे। परंतु आज के युवा चेतन भगत की मैगजीन, ऑनलाइन चैट तथा मैसेंजर का उपयोग करते हैं जिससे मानव का भोगों के प्रति राग बढ़ता जा रहा है। बच्चे भी घर के बाहर खेलने जाते थे अब तो लैपटॉप, मोबाइल पर ही टाइम पास करते हैं, जिसका गलत प्रभाव व्यक्ति के दिमाग तथा दिल पर पड़ रहा है तथा विकास भी सीमित हो गया है।
३ – EDUCATION (शिक्षा ) :- शिक्षा इतनी तेज तथा महंगी हो गई है कि पहले सात – आठ बच्चों की पढ़ाई में जितना खर्च होता उससे ज्यादा आज एक बच्चे की पढ़ाई में हो गया है। पेरेंट्स कैसे भी करके पापस्थानक कर पैसे कमाते हैं, लेकिन उन्हें क्या पता – जिसे बचपन में बैबीसीटर संभाले, स्कूल में टीचर, ट्यूशन पर ट्यूटर, कॉलेज में प्रोफेसर संभाले वो बेटा बुढ़ापे में अपने माता – पिता को क्यों और कैसे संभालेगा, तथा उनका फ्यूचर भी सेफ कैसे रहेगा।
इसलिए बच्चों को संस्कारित बनाना है, उनके जीवन का विकास करना है तो स्कूल के साथ धार्मिक पाठशाला भी जरूरी है। जिससे वे परमात्मा के मार्ग का अनुसरण कर विषय भोगों का त्याग कर कर्म रूपी ऑपरेटर सिस्टम को परास्त कर सकते हैं, अपने जीवन का विकास कर सकते हैं। जिससे बच्चे तो संस्कारित होंगे ही साथ ही माता-पिता का भविष्य भी सुरक्षित होगा।