जिसने अपने जीवन का मूल्यांकन करना सीख लिया, जिसने अपने जीवन की महानताओं को पहचान लिया है, जिसने अपनी मूल्यवत्ता जान ली है, वह दुनिया की संपत्ति से ऊपर अपने जीवन को रखेगा। इस जीवन का उपयोग करेगा और जीवन को बचाने की कोशिश करेगा। याद रखें, धन से सब कुछ पाया जा सकता है, सत्ता से सब कुछ पाया जा सकता है लेकिन इनसे जीवन नहीं पाया जा सकता। सत्ता और वैभव जीवन से अधिक महान नहीं हो सकते ।
याद है ना…. जब सिकंदर भारत – विजय पर आया था तो उसे अस्सी वर्षीय वृद्धा मिली थी। उसने सिकंदर से पूछा, ‘तुम कौन हो और कहां से आए हो ? सिकंदर ने कहा, ‘मैं सिकंदर महान हूं, विश्व – विजेता हूं और यूनान से आया हूं।’ वृद्धा ने कहा, ‘क्यों आया है ? उसने कहा, ‘विश्वविजय के अंतर्गत भारत को जीतने के लिए आया हूं।’ वृद्धा ने कहा, ‘जब भारत को जीत लेगा तब क्या करेगा ?’ और जो पड़ोसी देश है उन्हें जीतूंगा।’ ‘उसके बाद क्या करेगा ?’ ‘सारी दुनिया को जीत लूंगा।’ उसके बाद क्या करेगा ? वृद्धा ने फिर पूछा। सिकंदर ने कहा, ‘उसके बाद सुख की रोटी खाऊंगा।’ वृद्धा ने कहा, ‘आज तुझे कौन – सी सूखी रोटी की कमी है जो जान बूझकर दु:ख की रोटी की ओर कदम बढ़ा रहा है। याद रखना जो व्यक्ति अपने जीवन में बेलगाम आकांक्षाएं रखता है वह सुख की रोटी खाने को तरस जाता है।’
ऐसा ही हुआ, सिकंदर अपनी आयु के पैंतीस वर्ष भी पूर्ण नहीं कर पाया था कि बीमार हो गया। रोग भी ऐसा लगा कि चिकित्सकों मैं कह दिया कि उसे रोग मुक्त कर पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है।
उसकी आयु के एक-दो घंटे ही शेष रहे थे कि चिकित्सकों ने कह दिया कि अब उसे जो कुछ करना है कर ले। सिकंदर अपनी मां को बहुत प्यार करता था। वह चाहता था कि उसकी मां जो उससे बहुत दूर यूनान में थी उसका मुंह देख ले और उसकी गोद में सिर रखकर अपने प्राण छोड़, लेकिन यह असंभव था। चिकित्सक कुछ नहीं कर पा रहे थे। तब सिकंदर ने वही किया, जो हर संपन्न व्यक्ति करता है, उसने अपना दांव खेला और कहा, ‘अगर तुम लोग मुझे चौबीस घंटे की जिंदगी दे सके तो मैं प्रत्येक डॉक्टर को एक करोड़ स्वर्ण मुद्राएं दूंगा।’ डॉक्टरों ने कहा, ‘ कैसा मजाक करते हो सिकंदर। क्या धन से, सोने से जिंदगी खरीदी जाती जाती है ?’ तब हताश हुए सिकंदर ने अपनी जिंदगी का दूसरा दांव खेला। उसने कहा, ‘ तुम मुझे केवल बारह घंटे की जिंदगी दे दो मैं तुम्हें अपने विश्व साम्राज्य का आधा हिस्सा दे दूंगा।’ डॉक्टरों ने कहा, ‘ हम कोशिश कर सकते हैं, लेकिन बचाना हमारे हाथ में नहीं है।’
और हताश होकर सिकंदर ने जीवन का अंतिम दाव लगाया कि अगर कोई मुझे दस घंटे की जिंदगी दे दे तो दुनिया का सारा साम्राज्य उसके नाम कर दूंगा।’ लेकिन कोई ऐसा ना कर सका। सिकंदर देखता रहा कि उसकी सांस धीमी पड़ने लगी, उसके प्राण निकलने को हो गए, तब क्षणों में मरने से पहले, अपने पास खड़े लोगों से कहा, ‘ मेरे मरने के बाद लोगों को बताना कि सिकंदर जिसने सारी दुनिया को जीता, पर अपनी जिंदगी से हार गया।’
सच है , इंसान पैदा होकर सुख की चाहत में अपना वजूद ही भूल जाता हैं…और अपना अस्तित्व ही मिटाने में लग जाता हैं…
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सच है , इंसान पैदा होकर सुख की चाहत में अपना वजूद ही भूल जाता हैं…और अपना अस्तित्व ही मिटाने में लग जाते हैं.
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