जीवन में जो महत्व स्वास का है, समाज में वही महत्व विश्वास का है।
विश्वास जीवन की स्वास है, विश्वास जीवन की आस है, विश्वास जीवन की प्यास है। दुनिया विश्वास पर टिकी है। जब तक विश्वास- है तब तक दुनिया है।
विश्वास उठा यह दुनिया भी उठ जाएगी । लोग कहते हैं, पृथ्वी शेषनाग पर टिकी है लेकिन मैं कहता हूं कि दुनिया शेषनाग पर नहीं टिकी है, अपितु हमारे – तुम्हारे आपसी विश्वास पर टिकी है।
विश्वास सृष्टि की बुनियाद है, श्रद्धा जीवन की नींव है। जीवन की इमारत श्रद्धा और विश्वास के मजबूत पायों पर ही तो खड़ी होती है। पति का पत्नी पर विश्वास है तो जीवन में खुशियां हैं। यह विश्वास टूटा और जीवन नर्क बन गया। बापका बेटे में और बेटे का बाप में विश्वास है तो रिश्तो में माधुर्य है, मिठास है। यह विश्वास उठा कि जीवन में कड़वाहट आई। मालिक का नौकर पर विश्वास न हो तो व्यापार ठप्प हो जाए और नौकर का मालिक पर से विश्वास जाता रहे तो सेवा एक पीड़ादाई बोझ बन जाएगी ।
स्मरण रहे संसार विश्वास से चलता है, धर्म श्रद्धा से चलता है और विज्ञान तर्क से चलता है।
विज्ञान में श्रद्धा का कोई मूल्य नहीं । श्रद्धा उसके लिए व्यर्थ है, फिजूल है, कचरा है। वहां तर्क सर्वोपरि है। धर्म में तर्क बाधा है, गतिरोध है, रोड़ा है। धर्म में तर्क की कोई गुंजाइश नहीं है। विज्ञान दिमाग से चलता है और धर्म हृदय से, हृदय के समर्पण से चलता है।
धर्म और विज्ञान में वही अंतर है जो धोती और पायजामा में अंतर है। धोती ने एक बार पायजामा से पूछा, हम दोनों में क्या अंतर है ? पायजामा बोला – अंतर क्या है ? दोनों बने हैं धागे से। फर्क इतना है कि तुम खुलते हो पीछे से और मैं खुलता हूं आगे से।
धर्म धोती है और विज्ञान पायजामा है। धोती सरल होती है सहज होती है और पायजामा वक्र होता है बनावटी होता है।
जो सहज है वह धर्म है, प्राकृतिक है वह धर्म है। वह विश्वास ही तो है जो संत – मुनियों की पूजा – अर्चना करने की प्रेरणा देता है।