एक बार राजगृह में भगवान महावीर पधारे। उनके दर्शन करने हेतु राजा श्रेणिक भी पहुंचा। राजा श्रेणिक ने महावीर से कहा, ‘भगवान मैंने अपनी जिंदगी में न जाने कितने ही अधार्मिक कार्य किए है जिससे मेरा परलोक बिगड़ना निश्चित है। कोई ऐसा उपाय बताइए, ताकि मृत्यु के बाद मेरा जीवन सुधर जाए।’
महावीर ने उपाय सुझाते हुए कहा, राजन! यदि तुम पुणिया श्रावक की एक सामायिक खरीद लो तो तुम्हारा परलोक सुधर जाएगा। परलोक सुधारने का इतना सरल उपाय जानकर राजा श्रेणिक बहुत प्रसन्न हुआ। उसने निश्चय कर लिया कि वह पूणिया श्रावक की सामायिक जरूर खरीदेगा।
राजा ने पुणिया श्रावक के बारे में पूछा व मालूम कराया। राजा को ज्ञात हुआ कि पूणिया श्रावक उसी के नगर में रहने वाला सीधा-साधा एक गरीब श्रावक है। वह सूत कात कर जो कुछ थोड़ा बहुत कमाता है वही उसकी जीविका का आधार है। लेकिन बहुत ही धार्मिक विचार वाला व्यक्ति है तथा प्रतिदिन सामायिक करता है।
राजा श्रेणिक पूणिया श्रावक में के घर पहुंचा। सारी बात स्पष्ट करते हुए कहा कि मुझे विश्वास है कि तुम अपने राजा के लिए उस पर इतना परोपकार अवश्य करोगे, एक सामायिक दान के बदले जितना धन तुम लेना चाहो ले सकते हो।
पूणिया श्रावक ने उत्तर दिया ‘हे राजन मेरे लिए इससे अधिक प्रसन्नता की बात और क्या हो सकती है कि मैं अपने राजा के कुछ काम आ सकूं, लेकिन मुझे अपनी सामायिक का मूल्य मालूम नहीं है।’
मैं नहीं चाहता कि मैं वास्तविक मूल्य से अधिक धन आपसे लूं। यह सुनकर राजा असमंजस में पड़ गया। पूणिया श्रावक की एक सामायिक का सही मूल्य वह भी नहीं जान सका। अंत में दोनों ने निश्चय किया कि इस सवाल का जवाब भगवान से ही पूछा जाए।
राजा श्रेणिक व पूणिया श्रावक दोनों भगवान के पास पहुंचे। उन्होंने अपनी कठिनाई महावीर के सामने रखी। महावीर ने कहा, ” राजन तुम्हारा पूरा राज्य भी पूणिया श्रावक की एक सामायिक का मूल्य चुकाने के लिए अपर्याप्त है।” यह सुनकर राजा श्रेणिक को अचंभा हुआ। उसने कहा कि एक समय का इतना मूल्य। भगवान महावीर ने कहा, पूणिया श्रावक की सामायिक साधारण नहीं है।
उदाहरण देते हुए बताया कि एक बार पुणिया श्रावक का ध्यान सामायिक में पूरी तरह नहीं लगा। पूणिया श्रावक ने कारण जानने की कोशिश की लेकिन कोई भी कारण समझ में नहीं आ रहा था। अंत में उसने पत्नी से भोजन इत्यादि के बारे में पूछताछ की तो पत्नी ने बताया कि आज चूल्हा जलाने के लिए अंगारा पड़ोसी के यहां से लाई थी। वह बिना उससे पूछ ले आई थी। हो न हो उस पर सेंकी रोटी खाने से मन चंचल हो उठा। पूणिया श्रावक को सारी बात समझ में आ गई।
भगवान ने बात स्पष्ट करते हुए कहा कि पूणिया श्रावक की सामायिक का महत्व इसलिए अधिक है कि वह समभाव की साधना है और उसकी आजीविका नितांत शुद्ध है। लेकिन सामायिक में बैठने का महत्व भी है। उसके तदनुरूप जो अपने जीवन को ढाल लेता है उसका जीवन सुधर जाता है। इसीलिए सामायिक को एक धार्मिक अनुष्ठान बताया गया है।
सामायिक का अर्थ है “समभाव की साधना” पापमय क्रियाओं का त्याग करके दो घड़ी पर्यंत समभाव में अवगाहन ही सामायिक क्रिया है।