प्राय: स्कूल या कॉलेज से मित्रता की शुरुआत होती है। हम जिन लोगों के बीच रहते हैं, अपना अधिकांश समय व्यतीत करते हैं, उनसे हमारा परिचय होता है, संबंध प्रगाढ़ होते हैं, मित्रता बढ़ती है और हमको लगता है कि यह सब हमारे मित्र हैं, क्या वे वाकई हमारे मित्र हैं, हम अपना विवेक जगाएं और देखें कि क्या वाकई वे सभी हमारी मित्रता के लायक हैं ? अगर किसी में कोई कुटेव है तो आप तुरंत स्वयं को अलग कर लें, नहीं तो वे आदतें आपको भी लग जाएंगीं। अगर आपको सिगरेट पीने की आदत पड़ चुकी है तो झांकें अपने अतीत में। आपको दिखाई देगा कि आप विद्यालय या महाविद्यालय में पढ़ते थे, चार मित्र मिलकर एक सिगरेट लाते थे और किसी पेड़ की ओट में आकर सिगरेट जलाते और एक ही सिगरेट को बारी-बारी से चारों पीते थे। पहले छुप-छुपकर, फिर फिल्म हॉल में गए तब, फिर इधर-उधर हुए तब, फिर बाथरूम में पीने लगे और धीरे-धीरे सब के सामने पीने लगे। इस तरह पड़ी जीवन में एक बुरी आदत और आपने उन्हीं लोगों को अपना मित्र मान लिया, जिन लोगों ने आपके जीवन में बुरी आदत लगाई।
अगर आप गुटखा खाते हैं तो सोचे कि इसकी शुरुआत कहां से हुई। जरूर आपकी किसी ऐसे व्यक्ति के साथ जान पहचान थी जो इसे खाने का आदी था। आप उसके निकट आए, धीरे-धीरे उसके बुरे संस्कार आप में आ गए। अच्छे आदमी के पास रहकर अच्छाइयां तो सीख नहीं पाते। हां, बुरे आदमी की संगति से बुराइयां जरूर सीख जाते हैं। अगर नाला गंगा में मिलता है तो गंगाजल कहलाता है लेकिन गंगा का पानी नाले में डाल दें तो वह भी अपवित्र हो जाता है।
कबीरा गंदी कोटची पानी पीवे न कोय,
जाय मिले जब गंग में, सो गंगोदक होय।
किले के चारों ओर खुदी खंदक का पानी कोई नहीं पीता, लेकिन वही पानी जब गंगा में मिल जाता है तो गंगोदक बन जाता है और लोग चरणामृत मानकर उसे ग्रहण भी कर लेते हैं।
आप अपने इर्द-गिर्द रहने वाले लोगों को तोल लें कि वह किस स्तर के हैं ? आपके जीवन में मित्रों की क्वांटिटी कम हो तो कोई बात नहीं, लेकिन जितने भी मित्र हों, अच्छी क्वालिटी के हों। अच्छे लोगों के साथ, महान लोगों के साथ जियो, क्योंकि जिनके साथ हम रहेंगे, वैसे ही बन जाएंगे। आदमी तो क्या तोता भी जिनके बीच रहता है, वैसा ही बनता चला जाता है।
किसी व्यक्ति के पास दो तोते थे। उसने एक तोता दिया डाकू – शैतान को, दूसरा दिया एक संत को, भगवान के भक्तों को। तोते दोनों एक जैसे। दो माह बाद जब वह व्यक्ति उस संत के यहां पहुंचा तो तोते ने कहा ‘राम-राम, घर पर आए मेहमान, ‘राम-राम’ उस व्यक्ति ने सोचा ‘अहा ! तोता कितना अच्छा है। मेहमान का स्वागत करता है ‘राम’ का नाम भी लेता है।’ वह आगे चला और पहुंचा डाकू सरदार के यहां जहां उसने दूसरा तोता दिया था।
दूर से आते हुए व्यक्ति को देखकर तोता चिल्लाया, ‘अरे आओ, मारो – मारो, काटो – काटो, लूटो – लूटो। उस व्यक्ति ने सोचा – ये दोनों तोते एक मां के बेटे, दोनों भाई लेकिन दोनों में कितना अंतर ! एक कहता है – आओ स्वागतम, राम-राम। दूसरा कहता है – मारो – काटो – लूटो। उसे समझते देर न लगी कि तोता तो तोता है जिसके पास रहा, जैसी संगति में रहा वैसा ही उस पर असर हुआ। अगर डाकू साधु की संगति पाता है तो वह डाकू नहीं रहता बल्कि महान संत और ‘ ‘रामायण’ का रचयिता बन जाता है। व्यक्ति जैसी सोहबत पाता है वैसा ही बनता जाता है। आप अपना आकलन कर लें कि आप किन लोगों के साथ रह रहे हैं, किस तरह के लोगों के बीच रह रहे हैं।