दया सबसे बड़ा धर्म है। जो जनों में कूट-कूट कर भरी है । दया का अर्थ है परोपकार, कृपा, रहम, मृदुता, करुणा, मानवता, दयालुता ।
बहुत पुरानी बात है, राजा भोज बहुत बड़े विद्वान थे। एक दिन उन्होंने अपने यहां बड़े-बड़े विद्वानों को भोजन के लिए आमंत्रित किया।
राजा भोज ने उन सभी से आग्रह किया कि आप सभी लोग के अपनी जीवन में कोई न कोई आदर्श घटना हुई होगी। इसलिए आप सभी अपने जीवन की कोई आदर्श घटना एक-एक करके सुनाइए। तब सभी विद्वानों ने एक-एक करके अपनी आपबीती सुनाई। अंत में एक दीन हीन सा दिखने वाला विद्वान उठा और बोला – महाराज वैसे तो मैं इस सभा में आने लायक भी नहीं हूं परंतु मेरी पत्नी की आग्रह की वजह से मैं यहां आया हूं।
मेरी जीवन में कोई विशेष घटना तो मुझे याद नहीं है मगर हाल ही में मैं जब यहां आ रहा था तो मेरी पत्नी मेरे लिए एक पोटली में चार रोटियां बांध दी थी।रास्ते में चलते चलते जब मुझे भूख लगी तो मैं खाना खाने बैठा मैंने सिर्फ एक ही रोटी खाई उसी समय मेरे पास एक कुत्तिया आकर बैठ गई वह बहुत भूखी मालूम हो रही थी मुझे उस पर दया आ गई और मैंने उसे एक रोटी दे दी।
महाराज यही मेरी जीवन की आदर्श घटना है क्योंकि किसी भूखे को खिलाकर मुझे जो संतृप्ति और जो खुशी मिली उसे मैं जीवन भर नहीं भूल सकता।
राजा भोज इस घटना को सुनकर भाव – विभोर हो गए। वे बहुत प्रसन्न हुए और उस विद्वान को बोले कि – सच्चा इंसान वही है जिसके हृदय में दया हो और दूसरों की मदद करने की सच्ची भावना हो। राजा भोज ने खुश होकर उस विद्वान को नए वस्त्र आभूषण और मूल्यवान वस्तुएं उपहार स्वरूप दी और विदा किया।
हमें जीवन में अगर सच्ची खुशी पानी हैं तो हमारे पास एक सच्चा हृदय होना आवश्यक है दूसरों की मदद से जो खुशी मिलती है उसकी कोई कीमत नहीं है।
दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान।
तुलसी दया न छोड़िए जब लागे घट में प्राण।
तुलसीदास जी ने धर्म का मूल दया बताया है। दया ही अपने आप में सबसे बड़ा धर्म है। जिसका आचरण करने से मनुष्य का आत्म विकास होता है। समस्त हिंसा, द्वेष, वैर, विरोध की भीषण लपटें दया का सस्पर्श पाकर शांत हो जाती है। दया परमात्मा का निजी गुण है।
दया एक देवी गुण हैं। इसका आचरण करके मनुष्य देवत्व प्राप्त कर सकता है। दयालु हृदय में परमात्मा का प्रकाश ही प्रस्फुटित हो उठता है। क्योंकि भगवान स्वयं दया स्वरूप हैं। सर्व प्राणियों के प्रति दया का भाव रखना ईश्वर तक पहुंचने का सबसे सरल मार्ग है। जैन साधु साध्वी के पास जाते हैं वो आपको दया पालो का संदेश आशीर्वाद रूप में देते हैं। दया अपने आप में प्रसन्नता, प्रफुल्लता का मधुर झरना है। दया यानी करुणा, दया का उल्टा करो याद, हमेशा करुणा को याद करो तो तुम हमेशा खुशी से भरे रहोगे। जिस ह्रदय में दया, करुणा, मैत्री भावना निरंतर निर्झरित होती रहती है वही स्वयंसेवी आह्लाद आनंद के मधुर स्वर बहते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि दयालु व्यक्ति सहज आत्म सुख से सराबोर रहता है।
दया की शक्ति अपार है, सेना और शस्त्र बल से तो किसी भी राज्य पर अस्थाई विजय मिलती है, किंतु दया से स्थाई और अलौकिक विजय मिलती है। दयालु व्यक्ति मनुष्य को ही नहीं अन्य सभी प्राणियों को भी जीत लेता है।
24 तीर्थंकरो के 64 समशरण होते हैं।भगवान ऋषभदेव के 12, भगवान महावीर स्वामी के 8 और बाकी शेष तीर्थंकर के 2 -2 समशरण हुए। उस समशरण में तीनों गति के जीव आते हैं। शेर, बकरी, गाय, सांप, नेवला आदि जो एक दूसरे को देखते ही मार डालते हैं।
भगवान करुणा सिंधु है। उनमें दया भाव इतना है कि खून का रंग भी सफेद होता है। मैत्री भावना से ओतप्रत हैं। उनके प्रभाव से सभी जानवरों के मन में भी दया की भावना जाग जाती है। मैत्री भावना से सभी हिल मिलकर प्रभु के अमृत वचन श्रवण करते हैं। ऐसे कई बड़े बड़े संत हुए हैं, जिनके पास सांप, शेर आकर बैठ जाते हैं। ये सब दया का ही प्रताप है। जिसके हृदय में दया होती है उससे कोई प्राणी को द्वेष या भय नहीं लगता है। दयावान, करुणामय जहां से भी गुजरते है, वहां पर अहिंसक प्राणी खुद उनके पास स्वत: आ कर शांत हो जाते हैं।
जिस समाज में परिवार में लोग एक दूसरे के प्रति दयालु होते हैं, परस्पर सहृदय और सहायक बन कर काम करते हैं। वहां किसी तरह के विग्रह की संभावना नहीं रहती है।
दया से स्नेह आत्मीयता आदि कोमल भावो का विकास होता है। दयालुता ही तो समाज परिवार का एकाकार करती है।
वेद पढ़ना आसान हो सकता है लेकिन जिस दिन आपने किसी की वेदना को पढ़ लिया तो समझो जीवन सफल हो गया।
दिल के अंदर है खुदा,
दिल से खुदा न दूर।
दिल को सताना फिर बता,
उस रब को कब मंजूर।।
दया का गुण जिसमें होता है वह भवी होता है। जिसके दिल में मन में बिल्कुल दया नहीं होती है वह अभवी होता है। अभवी कभी भी मोक्ष प्राप्त नहीं करता है। भवी कभी ना कभी सिद्ध गति में जाता ही है, जायेगा! किसी के उम्मीद किए बिना उसका अच्छा करो क्योंकि किसी ने कहा है कि –
जो लोग फूल बेचते हैं, उसके हाथ में खुश्बू अक्सर रह ही जाती है।