भोजन प्रारंभ करने से पहले समझदार व्यक्ति सोच लेता है कि, ” यह भोजन मेरे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक तो साबित नहीं होगा ना ?” किसी व्यापार में संपत्ति लगाने से पहले मानव निश्चित रूप से सोच लेता है कि, ” इस व्यापार में लगाई हुई संपत्ति मुझे नुकसानी में नहीं डाल देगी ना ?” रास्ते पर कदम रखने से पहले मानव विशेष रूप से सोच लेता है कि, ” इस दिशा में बढ़ने वाले कदम मुझे गुमराह तो नहीं कर देंगे ना ?” परंतु….. मुख में से शब्द बाहर निकालने से पहले मानव प्रायः यह नहीं सोचता कि यह शब्द सामने वाले व्यक्ति और मेरे बीच के संबंधों के लिए नुकसानदायक तो साबित नहीं होंगे ना ?
” अंधे की पुत्र अंधे ही होते हैं “
ये शब्द बोलने से पहले द्रोपदी ने उसके संभावित परिणाम के बारे में सोच लिया होता तो महाभारत के युद्ध को जन्म देने में निमित्त बनने वाले ऐसे शब्द भला वह बोल पाती ? हरगिज़ नहीं ।
क्या कहूं ?
खेल-खेल में माचिस पेट्रोल पर रख देना और आग लगने के बाद चीख-पुकार करना, इसकी बजाय माचिस पेट्रोल पर रखने से पहले गंभीरता से सोच लेना,
यही समझदारी का कार्य है।
परिणाम के बारे में विचार किए बिना कुछ भी बोल देना और उसका कटु परिणाम आने के बाद सिर पकड़ कर बैठना – पछताते रहना, इसकी बजाय बोलने से पहले सोच लेना, यही समझदारी भरा कार्य है।
एक वास्तविकता की तरफ ध्यान आकर्षित करना चाहूंगा और यह कि,
संबंध – विच्छेद में या संबंध की कड़वाहट में संपत्ति की अल्पता उतनी निमित्त नहीं बनती, सुविधाओं की अल्पता उतनी निमित्त नहीं बनती, शरीर की रोगिष्ट अवस्था भी उतनी निमित्त नहीं बनती जितने बिना सोचे किए गए शब्द प्रयोग निमित्त बनते हैं।
याद रखना,
हमें चाहने वाले, अच्छे लगने वाले या हमारा ध्यान रखने वाले व्यक्ति इस जगत में अनेक हैं, परंतु हमें समझने वाले व्यक्ति इस जगत में बहुत कम है।
वास्तविकता यह है तब हमें समझ लेना चाहिए कि बिना सोचे बोले गए शब्द संबंधों के आसमान में कितने भयंकर चक्रवात का सर्जन कर सकते हैं।