बड़ा तो गधा भी हो जाता है और कुत्ता भी हो जाता है, गुंडा भी हो जाता है और दुर्जन भी हो जाता है, चोर भी हो जाता है और व्यभिचारी भी हो जाता है। मात्र समय व्यतीत होता है और यह सभी बड़े हो जाते हैं।
परंतु,
यह ” बड़प्पन ” न तो गौरवप्रद बनता है और न ही किसी के लिए आलंबन रूप बनता है।
परंतु……
एक बड़प्पन ऐसा है कि जिसका संबंध समय के साथ नहीं, पर सत्कार्यों के साथ है। उम्र के साथ नहीं, पर विवेक के साथ है।
यह बड़प्पन गौरवप्रद भी बनता है और अनेकों के लिए आलंबन रूप भी बनता है। एक सनातन सत्य हमें आंखों के सामने रखना है और वह यह है कि
जिंदगी की लंबाई बढ़ाने के लिए हम कुछ भी नहीं कर सकते लेकिन हमारे हाथ में यह दो चीजें हैं –
जिंदगी की चौड़ाई हम बढ़ा सकते हैं, जिंदगी की गहराई हम बढ़ा सकते हैं।
जीवन को यदि हम सत्कार्यों से महका रहे हैं तो हमारे जीवन की चौड़ाई बढ़ रही है और उन सत्कार्यों के फल – स्वरुप यदि हमारे मन की प्रसन्नता बनी रहती है तो हमारे जीवन की गहराई बढ़ रही है।
पर कैसी दयनीय दशा है हमारी ?
जीवन की इस जिस लंबाई को बढ़ाने में स्वयं परमात्मा को भी सफलता नहीं मिली उस लंबाई को बढ़ाने के लिए हम दिन – रात एक कर देते हैं और जीवन की जिस चौड़ाई और गहराई को बढ़ाने में चोर – डाकू – लुटेरों को भी सफलता मिली है उस चौड़ाई और गहराई को बढ़ाने के मामले में हम उदासीन बने रहते हैं।
यह कैसे चल सकता है ?
गंगोत्री में से निकलने वाली गंगा सागर में विलीन होने से पहले न जाने कितने प्रदेशों को हरा-भरा बना देती होगी !
उदयाचल पर उदित हुआ सूर्य अस्ताचल तक पहुंचते-पहुंचते न जाने कितने स्थानों को अपनी रोशनी से प्रकाशित कर देता होगा !
बस, इसी तर्ज पर,
मृत्यु के महासागर में हमारे जीवन की नदी विलीन हो जाए इससे पहले हमें अनेक सत्कार्य करके अपने जीवन की नदी को पवित्र – पावन बना देना है।