व्यसनों से, विलास से और वासना से जो मुक्ति दे रहा है उसका नाम विद्या।
तुम्हारे पास जो है, जितना है उससे तुम्हें तृप्ति की अनुभूति कराती रहे उसका नाम है विद्या।
और परिस्थिति कैसी भी सामने आ जाए तुम्हारी प्रशंसा में कमी ना आने दे उसका नाम है विद्या।
संक्षिप्त में,
जिससे तुम्हें मुक्ति, तृप्ति, एवं प्रसन्नता ये तीनों सहज सुलभ होती रहें उसका नाम है विद्या।
गंभीर और महत्वपूर्ण प्रश्न जो है वह यह है कि आज के स्कूलों और कॉलेजों में बच्चों और युवाओं को जो परोसा जा रहा है उसे “विद्या” का नाम दिया जा सकता है भला ?
के.जी. से लेकर एम.बी.ए तक के अभ्यास क्रम में एक भी पाठ ऐसा है भला कि जिसमें मुक्ति, तृप्ति और मस्ती पर पर्याप्त प्रमाण में जोर दिया गया हो ?
दु:ख के साथ इस प्रश्न का उत्तर देना पड़ता है ” ना “
अरे, ऐसी शिक्षा ग्रहण करके दुनिया के बीच आने वाले युवाओं के जीवन में मुक्ति के स्थान पर स्वच्छंदता, तृप्ति के स्थान पर भयंकर अतृप्ति और मस्ती के स्थान पर निराशा – हताशा और उव्देग, यह सब देखने को मिल रहा है।
दूध अच्छा है पर पेट बिगड़ा हुआ है।
ऐसे में दस्त लग जाए तो दूध को दोष नहीं दिया जा सकता। पर, पेट अच्छा हो और जहर परोसा गया हो। और ऐसे में मृत्यु हो जाए तो जहर को ही दोष जाएगा ना ?
आज की युवा पीढ़ी बिगड़े हुए पेट वाली नहीं है, स्वस्थ पेट वाली है।
पूर्व के काल में जो शिक्षा दी जाती थी उस शिक्षा की गुणवत्ता दूध जैसी थी। अधिकतर विद्यार्थी उस शिक्षा को ग्रहण करके स्वयं के जीवन में मुक्ति, तृप्ति और मस्ती का अनुभव करते थे, पर वर्तमानकाल में युवा पीढ़ी को जो शिक्षा दी जा रही है शिक्षा की गुणवत्ता जहर जैसी है।
और इसका ही यह दुष्प्रभाव है कि इस पीढ़ी का पेट अच्छा होने के बावजूद मुक्ति, तृप्ति और मस्ती के क्षेत्र में वे कंगाली के कगार पर खड़े हैं।
शिक्षा क्षेत्र में बैठे हुए दिग्गजों से इतना ही कहने का मन होता है कि सशक्त पाचनशक्ति वाली युवा पीढ़ी को जहर देकर उनकी पाचनशक्ति को बिगाड़ने का पाप मत करो।