विपुल संपत्ति, असीम सत्ता, गजब का सौंदर्य, अद्भुत पराक्रम ये सब कीर्ति के कारण अवश्य है, पर यह सभी कारण स्थायी नहीं है।
किसी भी क्षण तुम भिखारी बन सकते हो, किसी भी क्षण तुम सत्ताभ्रष्ट हो सकते हो, किसी भी पल तुम्हारे सौंदर्य में कमी आ सकती है और किसी भी क्षण तुम्हारा शरीर में तुम्हें धोखा दे सकता है। और ऐसी स्थिति में तुम्हारी कीर्ति मिट्टी में मिले बिना नहीं रहती है।
परंतु…….
कीर्ति का एक कारण ऐसा है जिसकी वजह से तुम्हारी बिदाई के बाद भी लोगों के दिल में, लोगों की जुबान पर तुम्हारा नाम रहता है। और वह कारण है –
दूसरों के आंसू पोंछने का प्रयत्न।
दूसरों के सुख के लिए तुम कितने प्रयत्न करते हो यह इतना महत्वपूर्ण नहीं है,
पर दूसरों के दु:ख को दूर करने के लिए तुम कितने प्रयत्नशील हो यह अधिक महत्वपूर्ण है।
आंसू और हास्य के क्षेत्र में दो प्रकार के व्यक्तियों को श्रीमंत मानता हूं।
सामने वाले के आंसू देखकर स्वयं के चेहरे का हास्य गायब हो जाए, वह प्रथम नंबर का श्रीमंत व्यक्ती है।
और
सामने वाले के चेहरे का हास्य देखकर स्वयं की आंखों के आंसू सूख जाएं, वह दूसरे नंबर का श्रीमंत व्यक्ती।
इन दो प्रकार के श्रीमंत व्यक्तियों में से एक में भी हमारा नंबर है भला ?
यदि नहीं तो इतना ही कहूंगा कि ऐसे श्रीमंत बने बिना इस दुनिया से हमें विदा नहीं होना है।
” जिस नयन ने करुणा छोड़ी, उसकी कीमत फूटी कौड़ी “
हरीन्द्र दवे की यह पंक्तियां हमें चुनौती देती हैं कि हमारे पास यदि करुणा है तो ही हमारे पास आंख है। अन्यथा वह आंख, आंख नहीं फूटी कौड़ी है।
नहीं, इस कलंक से हमें अपने आप को बाहर निकालना ही है।
हमारे दु:ख में भले हम हंसते रहें लेकिन दूसरों के दु:ख को दूर करने के लिए प्रयत्न करते ही रहें।