अपने करोड़ों का हीरा उपहार में दिया,
पर पागल को !
आपने मर्सिडीज गाड़ी उपहार में दे दी,
पर शराबी को !
क्या फायदा ?
आपने पांच लाख मुफ्त में दे दिए,
पर अंधे को !
क्या फायदा?
प्रश्न यह नहीं है कि आपके पास क्या है ? प्रश्न यह है कि आपके पास जो भी है उसे पहचानने वाली, परखने वाली नजर आपके पास है भला ?
वह यदि आपके पास है तो मिट्टी के व्यापार में भी आप करोड़पति बन सकते हो और वह आपके पास नहीं है तो हीरे – जवाहरात के व्यापार में भी आप दिवाला निकाल सकते हो।
परंतु एक बात।
प्रत्येक हीरा कीमती नहीं होता,
प्रत्येक गाड़ी कीमती नहीं होती,
प्रत्येक नोट कीमती नहीं होता,
परंतु प्रत्येक पल ?
प्रत्येक पल कीमती है।
प्रत्येक समय ?
प्रत्येक समय कीमती है।
कारण ?
प्रत्येक पल में आपको सज्जन, संत यावत् परमात्मा बना देने की क्षमता छिपी हुई है। शिष्टाचार द्वारा आप सज्जन बन सकते हो। सदाचार द्वारा आप संत बन सकते हो। समता द्वारा आप परमात्मा बन सकते हो। पर लाख रुपए का प्रश्न यह है कि समय की इस ताकत को पहचान सके ऐसी नजर हमारे पास है भला ?
इस प्रश्न का उत्तर ” ना ” में है।
यदि इस मंगल नजर के मालिक हम होते तो समय का जिस प्रकार से दुरुपयोग हम आज कर रहे हैं वह हरगिज नहीं करते।
जवाब दो – टी.वी. को कितना समय दिया जा रहा है ?
मोबाइल कितने समय का बलिदान ले रहा है ?
अखबार और मैगजीन कितना समय खा रहे हैं ?
गप्पे लगाने में, घूमने – फिरने में और खाने-पीने में कितना समय जाया हो रहा है ?
याद रखना,
करोड़ों रुपए के हीरे की कीमत न आंक सकने वाला शायद करोड़पति बनने से वंचित रह जाता है, पर समय की कीमत न आंक सकने वाला तो पापी बन जाता है।