हजारों पतझड़ का अनुभव करने के बाद भी किसी वृक्ष ने कभी आत्महत्या करने का मार्ग पसंद नहीं किया है।
कारण ?
पतझड़ के बाद कभी तो वसंत आता ही है। सूर्य प्रतिदिन अस्ताचल पर जाता है पर इसके बावजूद उसके चेहरे पर कभी उदासी नहीं छा जाती।
कारण ?
उसे पक्का यकीन होता है कि कल मेरा उदयाचल पर आना निश्चित ही है।
अरे, वृक्ष और सूर्य की बात छोड़ो।
आज तक किसी पशु ने – उस पर चाहे कैसे भी भयंकर दु:ख आए हैं – आत्महत्या का निकृष्टतम मार्ग नहीं अपनाया है।
किसी गधे ने कुंभार से त्रस्त हो रेल की पटरीयों पर लेटकर आत्महत्या कर ली,
ऐसा तुमने कहीं सुना है भला ?
किसी भैंस ने चारे – पानी के अभाव से दु:खी होकर जहर पी लिया, ऐसा तुमने कभी सुना है भला ?
नहीं ना ?
पशु – पक्षी को जीना है, कीडे – मकोड़े को जीना है, पर ना जाने इंसान को क्या हो गया है ?
उसकी इच्छा – अपेक्षा के विरुद्ध कभी कुछ हो जाता है और वह आत्महत्या कर के जीवन समाप्त करने की राह पर अपने कदम रख देता है !
एक बात याद रखना कि
वृक्ष सूख जाए यह नियम है,
पर उसे काट देना यह अपराध है।
बस इसी तर्ज पर, जीवन का समाप्त हो जाना यह नियम है और उसे खुद होकर समाप्त कर देना यह तो अपराध है।
और, दु:खद आश्चर्य आज के युग में यह निर्मित हुआ है कि सुख – सुविधाओं के लिए वर्तमान काल में जितनी सामग्री है उतनी सामग्री पूर्व के समय में नहीं थी इसके बावजूद, दवाइयां – अस्पताल आदि की जितनी व्यवस्था वर्तमान में उपलब्ध है उतनी व्यवस्था पूर्व के समय में नहीं थी इसके बावजूद, वर्तमान समय में आत्महत्या कर के जीवन समाप्त करने वाले लोगों की संख्या पूर्व के समय में आत्महत्या करने वालों से कई – कई गुना ज्यादा है ।
और आत्महत्या करने वालों में किशोरों एवं युवाओं की संख्या देखकर मन अवसादग्रस्त हो जाता है।
क्या कारण है कि लोग आत्महत्या जैसा कायराना कदम उठाते हैं ?
दो कारण हैं –
एक तो यह कि जो हमें मिलता है वह कितना बेशकीमती है उसकी समझ नहीं है। और दूसरा,
उस जीवन को बचाने के लिए जो सहनशक्ति होनी चाहिए वह सहनशक्ति नहीं है।
परमात्मा सभी को सद्बुद्धि दें।