रास्ता पूरा किचडवाला है,
गिरे बिना मंजिल तक पहुंच जाना यह चमत्कार है।
चलते-चलते गिर जाना यह सहजता है। और एक बार गिरने के बाद वहीं पड़े रहना खड़ा नहीं होना यह दयनीयता है।
एक भी गलती के बिना जीवन व्यतीत कर देना यह चमत्कार है। गलतियां होते रहना यह सहजता है। पर, गलतियां होते रहने के बावजूद उनका बचाव करते रहना, उनका स्वीकार नहीं करना यह दयनीयता है।
जवाब दो –
गलती बार करने से पहले क्या हम जागृत रहते हैं ? गलती होने के पश्चात उसका स्वीकार कर सकें इतने सरल बने रहते हैं ? या फिर गलती का बचाव करते रहकर वक्र की बने रहते हैं ?
क्या कहूं ?
गलती करने से पहले हम जागृति नहीं रखते। गलती होने के बाद उसका स्वीकार करने की सरलता हम दर्शा नहीं पाते और गलती का बचाव करने की कठोरता दर्शाये बिना हमें चैन नहीं पड़ता !
हमारा भविष्य कैसा होगा ?
समझ में तो यह नहीं आता कि गलती करते समय जो अहंकार अपना चेहरा नहीं दिखाता वहीं अहंकार गलती के स्वीकार के समय सीना तानकर जाने कहां से आ खड़ा होता है ?
इस बात की सच्चाई को परख लेना –
गलती स्वीकार करने से रोकने वाला कोई एक प्रधान तत्व हो तो वह अहंकार ही है।
जिसे प्रेम में नहीं,
पर प्रतिष्ठा में रुचि है उसका नाम अहंकार है। जिसे प्रतिक्रमण में नहीं, पर आक्रमण में रुचि है उसका नाम अहंकार है। जिसे दोषों की गटर साफ करने में नहीं, पर दोषों की गटर का ढक्कन लगाने में रुचि है उसका नाम अहंकार है।
जहर से शायद किसी का जीवन बच भी गया होगा, लेकिन अहंकार ने तो सभी को खत्म करने का काम ही किया है। ऐसे सद्गुणघातक अहंकार का हम खात्मा नहीं कर सकते ?