रोगी को दवाई लेने की प्रेरणा कोई नहीं भी करता है तो भी बिना प्रेरणा वह दवाई ले लेता है।
कारण ?
रोग उसे अच्छा नहीं लगता और दवाई लिए बिना रोग जाएगा नहीं इसकी पक्की जानकारी उसे होती है किंतु…….
प्रेरणा देने के बावजूद उपदेश सुनना इंसान को बहुधा अच्छा नहीं लगता।
कारण ?
इसमें स्वयं के अहंकार को चोट लगती है और उद्देश्य को अमल में लाने के लिए जीवन व्यवस्था में कुछ निश्चित परिवर्तन करना पड़ता है।
कमाल की विडंबना तो यह है कि
उपदेश अधिकांशत: सुख को सुरक्षित रखने के संबंध में या हित को सुरक्षित करने के संबंध में ही होता है ; दु:ख से दूर रहने के विषय में या दोंषों से बचते रहने के विषय में ही होता है पर इसके बावजूद उपदेश सुनना प्राय: अच्छा नहीं लगता है।
यद्यपि, जिसके द्वारा उपदेश दिया जाता है उसका स्वयं का जीवन यदि उस उद्देश्य अनुरूप अर्थात उदाहरण स्वरूप हो तो उसके द्वारा दिए जाने वाले उपदेश के प्रति प्राय: उदासीनता या अरुचि का भाव नहीं रहता।
जवाब दो –
हमें दूसरों को उपदेश देने से अधिक रूचि है या दूसरों के लिए उदाहरण स्वरूप बनने में अधिक रूचि है ?
शब्दों की बाजीगरी करने में अधिक रुचि है या उन शब्दों को आचरण में रूपांतरित करने में अधिक रूचि है ?
क्या कहूं ?
बुजुर्ग या जिम्मेदार व्यक्ति का उपदेश जब शक्तिविहीन हो जाता है तब परिवार या संस्था मटियामेट हो जाती है।
आज देखना हो तो देख लो,
अधिकतर परिवार अधिकतर संस्थाएं छिन्न-भिन्न हो चुकी हैं।
कारण ?
मैच पर अंपायर का कोई नियंत्रण नहीं रहा !
दो काम हमें करने हैं –
एक, उपदेश यदि श्रवण के योग्य हो तो हम उपदेश के शब्दों की ओर ध्यान केंद्रित करें, उपदेश देने वाला उदाहरण रूप है या नहीं इसकी चिंता न करें।
और दूसरा,
यदि हम उपदेश दाता बनना चाहते हैं तो उपदेश देने की जल्दबाजी न करते हुए पहले उदाहरण स्वरूप बन जाएं।
निहाल हो जाएंगे।