दु:ख में से सुख में जाने के लिए मनुष्य स्थान बदलता रहता है।
अशांति में से शांति में जाने के लिए मनुष्य व्यक्ति बदलता रहता है।
उव्दिग्नता में से प्रसन्नता में जाने के लिए मनुष्य सामग्रियां बदलता रहता है।
और तो और,
कुरूप शरीर को सुंदर बनाने के लिए मनुष्य चमड़ी बदलता रहता है।
पर,
जीवन का आमूलचूल सम्यक् परिवर्तन करने के लिए मनुष्य अपनी गलत विचारधारा को बदलने के लिए तैयार नहीं होता।
जैसे टंकी का पानी बदले बिना नल का पानी बदलने के प्रयत्नों में सफलता नहीं मिलती वैसे ही मन की विचारधारा बदले बिना, दूसरा सब चाहे कितना भी बदल लो, प्रसन्नता का अनुभव करने में और सद्गुणों का विकास करने में सफलता नहीं मिलेगी। यद्यपि,
इस संदर्भ में एक बात विशेष रूप से समझ लेना है कि विचार बदलना यह अलग बात है और विचारधारा बदलनी यह अलग बात है।
विचार तो प्रसंग विशेष पर बदलते रहते हैं लेकिन उनका आयुष्य लंबा नहीं होता। बर्तन बदलने पर पानी का आकार जैसे बदलता रहता है वैसे ही प्रसंग बदलने पर विचार भी बदलते रहते हैं।
पर,
विचारधारा का मुलस्वरूप रूपये के नोट जैसा होता है।
चाहे कितने लोग के हाथ में आने के बाद भी, चाहे जितने स्थान पर जाने के बाद भी, चाहे जितना समय बीतने के बाद भी रुपए का नोट जैसा अपना मूल्य टीकाये ही रखता है वैसे ही बदली हुई विचारधारा कैसे भी प्रसंगों में बड़ी मजबूती से टिकी रहती है।
संक्षिप्त में,
विचारों का आयुष्य अल्प है जबकि विचारधारा दीर्घ आयुष्य वाली है। जीवन को यदि हम निखार देना चाहते हैं तो हमें विचारधारा बदलनी पड़ेगी।
अंतिम बात,
विचारधारा बदल लें तो जिंदगी एक मजा है और विचारों का बोझ दिमाग पर रखकर जीते रहे तो जिंदगी एक सजा़ है।