बाल मंदिर की परीक्षा……
आठवीं की परीक्षा…….
हायर सेकंडरी की परीक्षा…..
बी.कॉम. की परीक्षा….
सी.ए. की परीक्षा.…..
आई.आई.टी. की परीक्षा.…..
उत्तरोत्तर अधिक से अधिक कठिन ही रहनेवाली हैं।
जमीन पर चलना…..
छत पर पहुंचना……
टेकरी पर चढ़ना…..
पर्वत के शिखर पर पहुंचना……
उत्तरोत्तर अधिक से अधिक कठिन ही रहने वाला है।
यदि तुमने सरल को पसंद कर लिया तो तुम्हें जो पुरस्कार मिलेगा वह मामूली ही मिलेगा और कठिन की चुनौती को यदि तुम ने स्वीकार कर लिया तो तुम्हें मिलने वाला पुरस्कार तुम्हें निहाल कर देगा।
परन्तु……
मानव यह मान बैठा है कि जीवन कष्ट बिना का होना चाहिए। कष्ट विकास में ‘बाधक’ है और प्रसन्नता के दुश्मन हैं।
जबकि वास्तविकता यह है कि सूर्य के प्रचंड ताप के बिना वृक्ष को मजबूती नहीं मिलती। आग की भयंकर गर्मी के बिना घड़े को मजबूती नहीं मिलती।
छैनी की मार खाए बिना पत्थर को प्रतिमा बनने का गौरव नहीं मिलता।
प्रसूति की वेदना सहन किए बिना स्त्री को पुत्र दर्शन का सौभाग्य नहीं होता।
साधनाजन्य कष्ट सहन किए बिना साधक को सिद्धि नहीं मिलती।
यह समस्त वास्तविकता यही कहती है कि कष्ट जीवन में अनिवार्य ही है इतना ही नहीं, कष्ट जीवन के विकास में बाधक नहीं अपितु साधक है।
शारीरिक स्वास्थ्य में जो स्थान नीम के रस का है वही स्थान जीवन में कष्टों का है।
नीम के रस का स्वाद कड़वा होता है, पर शरीर के स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है।
बस इसी तरह,
मन के लिए कष्ट शायद तकलीफ रूप हो, पर जीवन के विकास के लिए अद्भुत लाभदायक है।
इसीलिए तो किसी ने कहा है –
” जिसके होठों पर हंसी और पैरों में छाले होंगे। मालिक वो ही तेरे ढूंढने वाले होंगे।”