समस्याओं से घबराकर भागने से उनका निराकरण नहीं होता। डटकर सामना करने से ही समस्याओं पर काबू पाया जा सकता है।
एक प्रसिद्ध वक्ता एक बार एक सरोवर के किनारे चले जा रहे थे। वे किसी गंभीर चिंतन में उलझे हुए थे। सरोवर से कुछ ही दूरी पर पेड़ों का समूह था , जिस पर कई बन्दर रहा करते थे। बंदरों के झुण्ड ने वक्ता को देखा तो वे उन्हें डराने के लिए उनकी तरफ बढ़े। जब बंदरों का झुण्ड उनके नजदीक आ गया , तब अचानक वक्ता का ध्यान टूटा। उन्होंने देखा कि लाल मुँह के विशाल व विकराल बन्दर उनसे अधिक दूरी पर नहीं थे। उन्हें अपनी ओर आते देख वक्ता घबरा गए और पलटकर भागने लगे। बन्दर भी उनके पीछे -पीछे भागे। वक्ता को लगा कि अब उनकी जिंदगी नहीं बचेगी।
तभी,
उधर से किसी बुजुर्ग का गुजरना हुआ। उन्होंने वक्ता को भागते देखा और उसके पीछे पड़े बंदरों के झुण्ड को भी। वे तुरंत समझ गए कि माजरा क्या है? अनुभवी बुजुर्ग ने वक्ता से जोर से चिल्लाकर कहा – वहीँ रुक जाओ भागो मत। वह पीछे पलटकर बंदरों के सामने खड़े हो गए। उनके इस तरह खड़े हो जाने से बंदरों का झुण्ड रुक गया। वे उसी तरह सीधे खड़े रहे तो बंदरों का झुण्ड वहाँ से भाग गया।
इस घटना ने वक्ता को गहराई तक प्रभावित किया। उसी दिन उन्होंने अपने भाषण में इस घटना का उल्लेख कर
कहा – उन विकराल बंदरों से डरकर
भागता रहता तो मैं बचता नहीं। बन्दर मुझे मार डालते। लेकिन जब मैं उनके सामने डटकर खड़ा हो गया , तो वे चुपचाप भाग गए।
इसी प्रकार संकट व समस्याओं से पलायन करने से वे दूर नहीं होती। हमें इनका सामने से डटकर सामना करना होगा तभी इन पर काबू पाया जा सकता है।
मनुष्य की कई समस्याएँ स्वयं की पैदा की हुई होती है , यदि उन समस्याओं का समाधान करना है तो मनुष्य को कुछ देर स्थिर होकर उन समस्याओं की जड़ में जाना चाहिए और उनका सामना करते हुए खत्म करना चाहिए।