किसी जंगल में एक बहेलिया घूमा करता था। वह पशु-पक्षियों को पकड़ता था और उन्हें मार देता था। उसका कोई भी मित्र न था। वह हमेशा जाल, डंडा और पिंजरा लेकर जंगल में घूमता रहता था।
एक दिन उसने एक कबूतरी को पकड़कर अपने पिंजरे में बंद कर लिया। इसी बीच जंगल में घना अँधेरा छा गया। तेज आँधी आई और मूसलाधार वर्षा होने लगी। बहेलिया काँपता हुआ एक वृक्ष के नीचे छिपकर बैठ गया। वह दु:खी स्वर में बोला – ‘ जो भी यहाँ रहता हो , मैं उसकी शरण में हूँ। ’
उसी वृक्ष पर अपनी पत्नी के साथ एक कबूतर रहता था। उसकी प्रिया कबूतरी अब तक नहीं लौटी थी। कबूतर सोच रहा था कि शायद आँधी और वर्षा में फँसकर उसकी मृत्यु हो गई थी। कबूतर उसके वियोग में विलाप कर रहा था। बहेलिए ने जिस कबूतरी को पकड़ा था , वह वही कबूतरी थी।
बहेलिए की पुकार सुनकर पिंजरे में बंद कबूतरी ने कबूतर से कहा – ‘ इस समय यह बहेलिया तुम्हारी शरण में आया है। तुम अतिथि समझकर इसका सत्कार करो। इसने ही मुझे पिंजरे में बंद कर रखा है , इस बात पर इससे घृणा मत करो। ’
कबूतर ने बहेलिए से पूछा – ‘ भाई , मैं तुम्हारी क्या सेवा करुँ ? ’ बहेलिए ने काँपते हुए कहा – ‘मुझे इस समय बहुत जाड़ा लग रहा है। जाड़े को दूर करने का कुछ उपाय करो।’
कबूतर कहीं से एक जलती लकड़ी ले आया। उससे सूखे पत्तों को जलाकर वह बहेलिए से बोला – ‘ उस आग से अपना जाड़ा दूर करो। मैं तो जंगल से मिलने वाली चीजों को खाकर अपनी भूख मिटा लेता हूँ। लेकिन तुम्हारी भूख मिटाने के लिए क्या करूँ , यह समझ में नहीं आ रहा है। जो शरीर घर पर आए अतिथि के काम न आ सके , उस शरीर को धारण करने से क्या लाभ ! ’
कबूतर अपनी बात करता रहा किंतु उसने कबूतरी को पकड़ने के लिए बहेलिए की निंदा नहीं की। थोड़ी देर में उसने बहेलिए से कहा – ‘अब मैं तुम्हारी भूख मिटाने का उपाय करता हूँ। इतना कहकर कबूतर थोड़ी देर आग के चारों ओर मँडराता रहा और अचानक आग में कूद पड़ा। ’
यह देखकर बहेलिया चकित रह गया। वह बोला – ‘ यह छोटा – सा कबूतर कितना महान है ! मुझे अपना मांस खिलाने के लिए यह स्वयं आग में कूद पड़ा। ’ बहेलिए को अपने जीवन पर बड़ी ग्लानि हुई। वह कबूतर के बलिदान और उसके उदार स्वभाव से बहुत प्रभावित हुआ।
आँसू बहाते हुए बहेलिए ने अपना जाल और डंडा फेंक दिया। उसने पिंजरे में बंद कबूतरी को भी मुक्त कर दिया। कबूतरी आग में जलकर मर जाने वाले अपने पति के पास बैठकर रोने लगी। उसका वियोग न सह पाने के कारण वह भी आग में कूद गई।
इस प्रकार शरण में आए हुए बहेलिए के लिए कबूतर और कबूतरी दोनों ने अपना बलिदान दे दिया। इसीलिए कहा गया है कि सभी प्रकार का दु:ख उठाकर भी अतिथि की सेवा करनी चाहिए।