हेलो दोस्तों,
आप मुझे पहचानते हो ?
शायद हां भी हो सकता है….
नहीं भी हो सकता है…..
क्या !
आप अपने आप को पहचानते हो….. इसका जवाब आप हां में ही दोगे।
अपने बारे में क्या जानते हैं ?
यही ना कि……
आपका नाम क्या है ?
आपके माता-पिता का नाम क्या है ?
आपके दादा-दादी का नाम क्या है ?
आप किस धर्म को मानते हैं ?
आपके रिश्तेदार कौन हैं ?
आप क्या व्यवसाय करते हैं ?
आपके कितने मित्र हैं ?
बस इसके अलावा आप कुछ और जानते हैं ?
पर यह शायद आपकी सही जानकारी नहीं है।
क्योंकि ,
सही में आपने आपके शरीर को पहचाना है।
और
आपको शरीर के अंदर रहने वाली आत्मा को पहचानने की आवश्यकता है।
आत्मा जो कि परमात्मा का अंश है।
परमात्मा से सभी मनुष्य और जीव मात्र की आत्माएं उसी से जुड़ी हुई है।
उसको जानना अति आवश्यक है।
आत्मा वह है जो कभी मरती नहीं,
जिसे कभी डूबाया नहीं जा सकता,
जिसे कभी नष्ट नहीं किया जा सकता, जिसका कभी अंत नहीं है,
जो अजरा अमर है।
उस आत्मा को जानना हमारे जिंदगी का हमारे जीवन का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य होना चाहिए।
आत्मा को कभी कर्म बंध नहीं लगता है। और जो भी कर्म बंध या कर्म आप बांध रहे हो वह शरीर के साथ में और शरीर के कारण ही बांध रहे हो।
उसका संपूर्ण कारण हमारा शरीर से अब जुड़ा हुआ है।
हम जो भी कर्म करते हैं वह इस शरीर को पोषक या पोषण देने के लिए करते हैं।
हम इस शरीर को खिलाते हैं,
इस शरीर की कामनाएं, शरीर की इच्छाओं को पूर्ण करने के लिए नीति – अनीति से जुड़े कर्म करते हैं।
स्वार्थ, द्वेष, संग्रह को जन्म भी यह शरीर द्वारा दिया जाता है।
हम हमारे शरीर को अपना मान बैठे हैं ,
इस संसार को हम अपना मान बैठे हैं।
जो कि एक दिन नष्ट हो जाने वाला है ,
यहीं पर छूट जाने वाला है,
संसार यही पर रह जाएगा,
शरीर यहीं पर जल जाएगा ।
सिर्फ आत्मा जाएंगी पर उस आत्मा को जानना अति आवश्यक है।