अपने बचपन में एक कहानी सुनी होगी कि एक राजा का अंगूठा कट गया। उसने यह बात मंत्री को बताई। मंत्री ने कहा, ‘उदास ना हो राजन जो होता है अच्छे के लिए होता है।’ राजा यह बात सुनकर क्रोधित हो गया कि उसका तो अंगूठा कट गया और मंत्री कह रहा है जो होता है अच्छे के लिए होता है। उसने मंत्री को कारागार में डलवा दिया। कई दिन बीते, राजा जंगल में शिकार खेलने गया। सैनिक इधर-उधर भटक गए, वह अकेला चलता फिरता आदिवासियों की बस्ती में पहुंच गया। वे क्या जाने की कौन राजा कौन प्रजा ! उन्होंने उसे पकड़ लिया क्योंकि उन्हें किसी न किसी आदमी की बलि देनी थी। उनके गुरु ने कहा था कि अपना कार्य सिद्ध करना चाहते हो तो किसी श्रेष्ठ पुरुष की बलि दो, तुम्हारा काम सिद्ध हो जाएगा।
आदिवासी उस राजा को पकड़कर गुरु के सामने लाए और कहा, ‘लीजिए इस की बलि दीजिए।’ राजा ने बहुत समझाया पर वह भीड़ कहां मानने को तैयार थी, गुरु ने मंत्रोच्चार आरंभ किए और आदेश दिया की बलि चढ़ाई जाए। तभी यकायक उसकी नजर पड़ी कि राजा का अंगूठा नहीं है। गुरु ने कहा, ‘इसे छोड़ दो क्योंकि इसका अंग भंग है और जिसका अंग भंग हो उसकी बलि देवी स्वीकार नहीं करती।’
राजा को छोड़ दिया गया। वह गंभीर चित्त होकर महल में पहुंचा उसे लगा कि सचमुच, मंत्री ने जो कुछ कहा वह सही कहा अगर मेरा अंगूठा न कटा होता तो, आज मेरी बलि तय थी। राजा दरबार में पहुंचा और ससम्मान मंत्री को बुलवाया और सारी घटना बताते हुए कहा, ‘तुमने जो कहा, सच कहा कि जीवन में जो होता है अच्छे के लिए होता है। मेरा अंगूठा कटा हुआ था अतः आदिवासियों ने मेरी बलि नहीं चढ़ायी, लेकिन यह तो बताओ कि तुम जो कारागार में पन्द्रह दिन रहे, यह तुम्हारे लिए अच्छा कैसे रहा।’ मंत्री ने कहा, ‘महाराज मैं आज भी कहता हूं जिंदगी में जो होता है, अच्छे के लिए होता है। मैं कारागार में था यह भी भगवान ने अच्छा किया। अगर कारागार में न होता तो मैं भी आपके साथ जाता और आपके साथ मैं भी पकड़ा जाता। राजन, आप का अंगूठा कटा था इसलिए आप तो बच जाते, पर बलि का बकरा मैं बन जाता।’
जीवन में जो मिले उसका स्वागत करो और जो खो जाए उसको भी प्रेम से स्वीकार करो। दु:ख और सुख दोनों समान भाव में स्वीकारो। सुख को भोग रहे हो तो पीडाओं को भोगने में संकोच क्यों कर रहे हो ? अगर अनुकूलता का तुम जीवन भर स्वागत करते रहे तो प्रतिकूलता के लिए क्यों चिंतित हो रहे हो। चिंता से बचने का पहला सूत्र है – जिंदगी में जो हो जाए उसे प्रेम से स्वीकार कर लें। किसी बात को लेकर मन में तनाव, चिंता, टेंशन पालने की वजह प्रकृति की गोद में जियो और सोचो कि जिंदगी में जो हुआ है अच्छा हुआ है। उस व्यवस्था को सहजता से स्वीकार करो। अगर ऐसे स्वीकार कर लोगे तो दु:ख कभी पास ना फटकेंगे।