एक बार मालदा शहर के बगीचे में एक अफगान व्यापारी वशीर मोहम्मद ने रात बिताई। सवेरे अपना सामान समेटकर वह वहां से चल पड़ा।
कई मील पहुंचने के बाद उसे याद आया कि सोने के सिक्कों से भरी थैली तो एक पेड़ की डाली पर ही लटकी रह गई है। धन के बिना व्यापार के लिए भी आगे नहीं जाया जा सकता।
दु:खी मन से वह वापस उसी ओर चल पड़ा। संयोगवश वीरेश्वर मुखोपाध्याय नामक एक बालक बगीचे में पहुंचा। खेलते – खेलते वह उस पेड़ के पास पहुंच गया , जिस पर सिक्कों से भरी थैली टंगी थी।
बालक ने उत्सुकतावश थैली उतारी। उसके अन्दर सोने की मुद्राएँ देखकर वह हैरान रह गया। उसने माली से पूछताछ की तो पता चला कि काबुल का व्यापारी रात गुजारकर यहां से दक्षिण की ओर रवाना हुआ है।
यह सुनते ही बालक थैली लेकर दक्षिण की ओर दौड़ चला। तभी उसे वशीर मोहम्मद उस ओर आता हुआ नजर आया। बालक ने उसकी पोशाक देखकर अंदाजा लगा लिया कि यही काबुल व्यापारी है।
उधर वशीर मोहम्मद ने भी बालक के हाथ में अपनी थैली देखी। बालक बोला , ‘ शायद यह थैली आपकी ही है। ’ मैं इसे आपको लौटाने के लिए आ रहा था।
एक नन्हे बालक के मुंह से यह सुनकर वशीर मोहम्मद दंग होकर बोला , ‘ क्या तुम्हें रुपयों से भरी थैली देखकर लालच नहीं आया। ’
यह सुनकर बालक सहजता से बोला , ‘ मेरी माँ मुझे कहानियाँ सुनाते हुए बताया करती है कि दूसरे के धन को मिट्टी के समान समझना चाहिए। चोरी करना घोर पाप है। ’
बालक की बात पर वशीर बोला , ‘ धन्य है तुम्हारी माँ। ’