एक महात्माजी किसी गांव में गए। अनेक शास्त्रीय प्रमाणों के आधार पर ‘आत्मा ‘ पर लंबा वक्तव्य दिया।
एक युवक , जो अपने आपको बौद्धिक मानता था , बोला – महात्मन ! अपने प्रवचन दिया , बड़ा श्रम किया , इसके लिए आपके प्रति हमारा आभार ज्ञापन। किंतु बाबाजी!
इतना सुनने के बाद भी आत्मा के अस्तित्व में मेरा कोई विश्वास नहीं है। मैं तो नास्तिक दर्शन चार्वाक को सही मानता हूं , जिसका सिद्धांत – जब तक जीओ , सुख से जीओ। वैषयिक सुखों का भोग करो क्योंकि शरीर के नष्ट हो जाने के बाद पुनर्जन्म जैसा कुछ नहीं है। जो कुछ है , इसी जीवन में है। फिर भी मेरा कोई आग्रह नहीं है। यदि आप मुझे आत्मा को हाथ में लेकर दिखा दें तो मैं मान लूंगा कि आत्मा भी कोई चीज है।
संत ने सोचा , इसे युक्ति से समझाना चाहिए। बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा – युवक ! तुमने कभी स्वप्न देखा है ?
युवक बोला – हां महाराज! कल रात ही मैंने बड़ा सुंदर स्वप्न देखा। लोकसभा का चुनाव हुआ और उसमें मैं जीत गया। मुझे प्रधानमंत्री बना दिया गया। 15 अगस्त का दिन आया। मैंने लालकिले से जनता को संबोधित किया। यह सब कुछ मैंने स्वप्न में देखा था।
संन्यासी ने कहा – युवक! मैं कैसे विश्वास करूं कि तुमने स्वप्न देखा था। यदि स्वप्न को हाथ में लेकर दिखाओ तो मैं मान सकता हूं कि तुमने सपना देखा था।
युवक को कुछ न सूझा तो बोला – महात्मन ! स्वप्न को तो नींद में ही देखा या भोगा जा सकता है।
जब तुम स्वप्न को हाथ में लेकर नहीं दिखा सकते तो मैं अमूर्त आत्मा को हाथ में लेकर कैसे दिखा सकता हूं।
यह सुनते ही युवक को बोध – पाठ मिल गया।