एक राजा भोजन करते हुए अपने मंत्री से कहता , ‘ आज सब्जी बड़ी स्वादिष्ट बनी है। ‘ कभी कहता , ‘ आज सब कुछ बड़ा ही सरस बना है। ‘
राजा सदैव हर वस्तु की तारीफ ही करता। इस पर विद्वान मंत्री कहता , ‘ इसमें प्रशंसा की क्या बात है। अच्छा और बुरा होना तो वस्तु का स्वभाव है। कभी एक वस्तु अच्छी लगती है , तो कभी वही बुरी लगने लगती है। आज किसी में गुण दिखाई देता है , तो कभी उसी में दोष दिखाई देने लगता है। ‘
पर इस बात से राजा सहमत नहीं होता था। एक दिन राजा और मंत्री कहीं जा रहे थे। वे एक गंदे रास्ते से निकले। राजा ने नाक बंद करके कहा , ‘ देखो , इसमें से कितनी दुर्गंध आ रही है। कितना गंदा है यह पानी। ‘
राजा ने इस बात को कई बार दोहराया तो मंत्री बोला , ‘ राजन , इसमें खिन्न होने की क्या बात है। यह तो पदार्थ का स्वभाव है। ‘
मंत्री ने खाई का थोड़ा पानी एक बर्तन में ले लिया और घर लाकर उसे खूब उबाला , फिर उसमें सुगन्धित पदार्थ डाले। मंत्री एक दिन वही पानी लेकर राजा के पास गया। भोजन के समय उसने वही पानी राजा को पीने के लिए दिया।
राजा पानी पीकर बोला , ‘ अरे , यह पानी कितना साफ और सुगन्धित है। इतना स्वादिष्ट जल तुम कहाँ से लाए? ‘
इस पर मंत्री बोला , ‘ यह तो प्रकृति का स्वभाव है कि गुण कभी दुर्गुण बन जाते हैं और दुर्गुण कभी गुण। अब इस पानी को ही देखिए , यह उसी खाई का है जो बहुत दुर्गंधित था। उसे देखकर आपने नाक बंद कर ली थी। लेकिन आज इसका एक नया रूप सामने है , जिसने आपको प्रसन्न कर दिया है। ‘
राजा अपने मंत्री की इस बात से सहमत हो गया।