एक बार दैत्यों पर विजय प्राप्त कर लेने से , देवताओं को अहंकार हो गया। उस सर्वशक्तिमान् ने सोचा कि उनका यह बढा हुआ अहंकार दूर करना चाहिये।
उसने एक बृहद् रूप धारण किया और देवताओं के सम्मुख अचानक प्रकट हो गया। उस विचित्र अलौकिक आकृति को देखकर देवता चकित रह गये।
वायु देवता को उस आकृति का परिचय प्राप्त करने के लिए भेजा गया। उस आकृति ने अपने आपको यक्ष बताया और वायु के सामने एक घास का तिनका रखकर , उसे हटाने की चुनौती दी। संसार को हिला देनेवाली शक्ति के साथ वायु ने प्रयास किया। परंतु एक बाल बराबर भी उसको नहीं खिसका सका। वायु क्षुब्ध होकर वापस आया।
फिर अग्निदेवता को भेजा गया। वह भी उस तिनके को भस्म नहीं कर सका। अंत में स्वयं देवराज इन्द्र उसे देखने गये। कितु वह आकृति अचानक लुप्त हो गई।
उस रहस्य को सुलझा न सकने से , इंद्र को भी लज्जित होकर लौटना पड़ा। तब उनके मस्तिष्क में आया कि यक्ष के रूप में , साक्षात् सर्वशक्तिमान ही थे , जिसकी दया से उसकी शक्ति की एक – एक चिनगारी उन्हें प्राप्त हुई है।