भगवान बुद्ध समय की महत्ता को बहुत अच्छी तरह से जानते थे। वे अपना एक भी क्षण कभी व्यर्थ नहीं गंवाते थे।
एक बार उनके पास एक व्यक्ति आया और बोला , ‘ महाराज , आप हर बार विमुक्ति की बात करते हैं। आखिर यह दुःख होता किसे है और दुःख को कैसे दूर किया जा सकता है ? ’
प्रश्नकर्ता का प्रश्न निरर्थक था। बुद्ध बेतुकी चर्चा में उलझना नहीं चाहते थे। उन्होंने कहा , ‘ अरे भाई ! तुम्हें प्रश्न करना ही नहीं आया। प्रश्न यह नहीं था कि दुःख किसे होता है बल्कि यह कि दुःख क्यों होता है ?
……..और इसका उत्तर है कि आप निरर्थक चर्चाओं में समय न गंवाएं। ऐसा करने पर आपको दुःख नहीं आयेगा।
यह बात ठीक उसी तरह है कि किसी विष बुझे तीर से किसी को घायल कर देना और फिर बाद में उससे पूछना कि यह तीर किसने बनाया है। भाई उस तीर के लगने पर उसका उपचार जरूरी है न कि निरर्थक बातों में समय गंवाना।
बुद्ध के जवाब ने उन जैसे कई लोगों की आंखे खोल दी।
इस बात को संक्षेप में कहें तो कई लोग कई तरह की बेतुकी बातों में समय को पानी की तरह बहा देते हैं। बहते पानी को तो फिर भी संरक्षित किया जा सकता है , लेकिन एक बार जो समय चला गया उसे वापिस कभी नहीं लाया जा सकता।
इसलिए समय को सोच समझकर खर्च करें। यह प्रकृति की दी हुई आपके पास अनमोल धरोहर है। कहते हैं कि अगर समय का आप ध्यान नहीं रखते तो समय भी आपकी कद्र नहीं करता।