आज मैंने हार मानना चाही , मैंने अपनी नौकरी छोड़ दि , मेरे रिश्ते छोड़ दिए , सबकुछ छोड मैं ईश्वर से आखिरी मुलाकात करने एक जंगल में गया ,
“भगवान् ” मैंने कहा “ क्या आप मुझे एक ऐसी वजह दे सकते है की मैं आखिर हार में क्यों न मानू ? ”
उनके जवाब ने मुझे चकित कर दिया
“ आसपास देखो दोस्त ” भगवान् ने कहा , “क्या तुम्हे घास और बांबू के पेड़ दिख रहे है? ” हां , मैंने कहा। ”
जब मैंने इनके बीज जमीन में बोए। तो मैंने इनका बहुत ध्यान रखा। मैंने इन्हें रौशनी दी , मैंने इन्हें पानी दिया। ये छोटे – छोटे पेड़ पोधे तो बहुत जल्दी बढे हुए और पूरी धरती को हरा भरा कर दिया।
पर बांबू के बीज से कुछ नहीं आया। पर मैंने बांबू को छोड़ नहीं दिया। एक साल में चारो और हरियाली ही हरियाली हो गयी। सारे पोधे फैल रहे थे। पर बांबू का नामो निशाँ तक नहीं था। चार साल हो गये फिर भी कुछ हुआ नहीं। पांचवें साल में धरती से बांबू का बीज अंकुरित हुआ। दूसरे सारे पेड़ पोधों की तुलना में ये बहुत ही छोटा था ।
पर केवल ६ महीने में बांबू का पेड़ सौ फिट तक बढ़ गया। उसने पांच साल अपनी जड़े मजबूत करने में उन्हें फ़ैलाने में बिताये और उन जड़ों ने उसे मजबूत बनाया और आवश्यकता की वो सारी चीज़े दी जो जरुरी थी। ”
“ मैं किसी को भी ऐसी चुनौती नहीं दूंगा , जिसे वो पूरा न कर पाए ”, भगवान् ने मुझसे कहा।
“ क्या तुम्हे पता है , अभी तक तुम अपनी जड़ें मजबूत कर रहे थे। ”
“ मैंने कभी बांबू का साथ नहीं छोड़ा। ”
“ मैं तुम्हे भी कभी अकेला नहीं छोड़ूगा। “
very inspiring.
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