अर्जनगढ़ के राजा अर्जन सिंह कपिल मुनि के आश्रम में नियमित रूप से आते – जाते रहते थे।
कपिल मुनि अत्यंत ज्ञानवान , विवेकशील और गुणवान थे। वह अपने पास आने वाले सभी व्यक्तियों की समस्याओं को सुलझाया करते थे।
एक दिन राजा ने गौर किया कि एक निपट देहाती और अनपढ़ व्यक्ति कपिल मुनि के पास नियमित रूप से आता है और कपिल मुनि अत्यंत तन्मयता के साथ उससे बातें करते हैं। यहां तक कि उससे बातें करते समय कई बार वह राजा को भी अनदेखा कर देते हैं।
एक अत्यंत साधारण व्यक्ति के साथ कपिल मुनि की आत्मीयता राजा को रास नहीं आई। वह उनसे बोले , ‘ महाराज , मैं आपसे एक प्रश्न पूछना चाहता हूं । ‘
कपिल मुनि बोले , ‘ पूछो वत्स , क्या जानना चाहते हो? ‘
राजा बोले , ‘ आप अत्यंत ज्ञानी और अनुभवी हैं। आपके पास बड़े – बड़े लोगों का आना जाना लगा रहता है। ऐसे में आपको शास्त्र ज्ञान से रहित साधारण और अनपढ़ लोगों में ऐसी क्या विशेषता नजर आती है कि आप उनके साथ बातें करते हुए सबको भूल जाते हैं। ‘
इस पर कपिल मुनि बोले , ‘ तुम्हारे मुकुट पर सुंदर नक्काशी की गई है। यह मुकुट किस धातु का बना है ? ‘
राजा अचरज से बोले , ‘ महाराज , यह मुकुट सोने का बना है । ‘
मुनि बोले , ‘ क्या सोना इसी रूप में खान से निकला होगा ? ‘
राजा बोले , ‘ नहीं महाराज , सोना तो अत्यंत बदरंग स्थिति में होता है , उसे तपा कर , तराश कर खरा किया जाता है। ‘
मुनि बोले , ‘ बिल्कुल इसी तरह यह अनपढ़ और देहाती व्यक्ति भी सोने की बदरंग अवस्था में है। मैं इसे तराश कर इस लायक बनाने का प्रयास कर रहा हूं ताकि यह अपने कार्यों से तुम्हारे राज्य का मान और सम्मान बढ़ाए। ‘