राजा होने के कारण देवराज इंद्र को अपने आप पर बहुत घमंड आ चूका था तथा अन्य देवताओ को वे अपने समक्ष तुच्छ समझते थे।
अपनी राजगद्दी को भी लेकर वे इतने आशंकित रहते थे की यदि कोई ऋषि मुनि तपश्या में बैठे तो वे आतंकित हो जाते थे , कहीं वो वरदान में त्रिदेवो से इन्द्रलोक का सिहासन ना मांग ले।
ऐसे ही एक दिन अभिमान में चूर इंद्र देवता स्वर्गलोक में ही कहीं भ्रमण कर रहे थे की तभी उन्हें नारद जी उनकी ओर आते दिखाई दिए।
नारद जी उनके समीप आते ही उनसे अन्य देवताओ के बारे में चर्चा करने लगे तथा उनकी महत्ता बताने लगे। इंद्र देवता को नारद मुनि की बात बिलकुल भी पसंद नही आयी और कहने लगे की आप मेरे सामने अन्य देवताओ की विशेषता बतलाकर मेरा अपमान करना चाहते है , आप से मेरी ख्याति सहन नही हुई जाती।
इस पर नारद मुनि देवराज इंद्र से बोले की देवराज आप मेरी बातो को अपना अपमान न समझे , यह आप की भूल है और वैसे भी प्रशंसा उसकी की जाती है जो खुद पे घमंड छोड़ कोई प्रशंसनीय कार्य करे।
इसे सुन इंद्र नारद मुनि से चिढ गए तथा बोले में समस्त देवो का राजा हुं , जिस कारण अन्य देवो को मेरे सामने झुकना ही पड़ेगा।
मेरे कारण सृष्टि चलती है क्योकि मेरे आदेश पर ही अन्य देवता कार्य करते है अगर में वरुण देव को धरती पर वर्षा न करने को कहुं तो पुरे धरती पर अकाल पड जायेगा और देवता भी इसके प्रभाव से अछूते नही रहेंगे।
इंन्द्र ने नारद मुनि का अपमान करते हुए कहा की आप जैसा इधर – उधर भटकने और मंजीरा बजाने वाला व्यक्ति देवराज जैसे महत्वपूर्ण उपाधि के महत्व और दायित्व को क्या जानें।
तब नारद ने इंद्र के घमंड को चूर करने की मंशा रखते हुए उनसे कहा माना की आप देवराज है और आप को किसी का भय नही पर मेरी एक बात जान लो , हमेशा शनि देव से मित्रता बनाये रखना अगर वे आप से कुपित हो गए तो आपका स्वर्गलोक आप से छीन जायेगा।
नारद की कहीं बात इंद्र को खटक गयी और वे शनि देव के पास गए तथा नारद जी से हुई सारी वार्तालाप उन्हें सुना दी।
शनि देव को भी इंद्र का अपने उपर इतना अभिमान अच्छा नही लगा तथा उन्होंने कहा की देवराज इंद्र कल आपको मेरा भय सतायेगा। इंद्र अपने घमंड में शनि देव से बोले आप चाहे कुछ भी कर ले पर में आपसे भयभीत होने वाला नही ऐसा कह कर वे स्वर्गलोक लोट गए।
रात को इंद्र को बहुत भयंकर सपने आये जिसमे एक विशाल दैत्य उन्हें खाने के लिए उनका पीछा कर रहा था। सुबह होते ही इंद्र ने सोचा ऐसा शनि के प्रभाव से हुआ तथा वह आज मुझे कोई न कोई कष्ट पहुचाने की चेष्टा करेगा अतः क्यों न में कहीं ऐसी जगह जाके छुप जाऊ जहा शनि मुझे धुंढ ना सके।
इंद्र ने एक ब्राह्मण का वेश बनाया तथा अपनी पत्नी के नजर से भी बचते हुए पृथ्वीलोक में एक वृक्ष के कोटर में जा के छुप गए। वहा वे पुरे दिन भूखे प्यासे छुपे रहे तथा हर समय उन्हें यह चिंता सताने लगी की कहीं शनि देव उन्हें देख ना ले।
रात होते ही इंद्र प्रसन्न होते हुए उस कोटर से निकले तथा सोचने लगे मेने आज शनि देव को भी अपनी चालाकी से मात दे दी। सुबह होते ही वे शनि देव के पास गए और उनसे कहने लगे की मेने कहा था की आप मुझे कोई क्षति नही पहुंचा सकते , अब तो आप मेरे सामर्थ्य को जान चुके होंगे।
इस पर शनि देव को हंसी आ गई तथा उन्होंने इंद्र से कहा की कल केवल मेरी छाया मात्र आप पर पड़ी थी इस कारण ही कल आप सारे दिन मुझ से भयभीत और भूखे प्यासे रहे अगर आप पर कुपित हो गया होता तो सोचो क्या होता ?
उसी क्षण इंद्र का सारा घमंड चूर हो गया और अपना सर झुकाये इंद्र ने शनि से अपनी गलती की क्षमा मांगी !