रावण के सोने का महल धन सम्पदा से परिपूर्ण था पर क्या आप जानते है की रावण को ये सोने की लंका कैसे प्राप्त हुई ।
पौराणिक कथा के अनुसार एक दिन कुबेर जो महान समृद्धि से युक्त थे वो अपने पिता के साथ बैठे थे। रावण ने जब कुबेर को देखा तो उसके मन में भी उसकी तरह ही समृद्ध बनने की इच्छा पैदा हुई। फिर रावण और उसके भाइयों ने तपस्या करनी आरम्भ कर दी , कुछ समय बाद रावण ने अपने मस्तक काट- काटकर अग्रि में आहूति दे दी।
उसके इस अद्भुत कर्म से ब्रह्मजी बहुत संतुष्ट हुए और प्रसन्न होकर उन्होंने स्वंय उन्हें तपस्या करने से रोका और कहा कि मैं आपकी तपस्या से प्रसन्न हूं और आप वर मांगों और तप से निवृत हो जाओ। ब्रह्मजी ने वर देने से पहलें ये शर्त रखी कि एक अमरत्व को छोड़कर आप कुछ भी मांग सकते हो और तुम्हारी इच्छा पूर्ण होगी और रावण को कहा कि तुमने जिन सिरों की आहूति दी है वे सब तुम्हारे शरीर में जुड़ जाएंगे तथा तुम इच्छानुसार रूप धारण कर सकोगे।
रावण ने कहा हम युद्ध में शत्रुओं पर विजयी हों और गंधर्व , देवता , असुर , यक्ष , राक्षस , सर्प , किन्नर और भूतों से मेरी कभी पराजय न हो। ब्रह्मा जी ने कहा की तुमने जिन लोगों का नाम लिया इनमें से किसी से भी तुम्हे भय नहीं होगा , केवल मनुष्य से हो सकता है। उनके ऐसा कहने पर रावण बहुत प्रसन्न हुआ और उसने सोचा – मनुष्य मेरा क्या कर लेंगे , मैं तो उनका भक्षण करने वाला हूं।
इसके बाद ब्रह्मजी ने कुंभकर्ण से वरदान मांगने को कहा , उसकी बुद्धि मोह से ग्रस्त थी उसने इंद्रासन माँगा लेकिन देवताओ के छल से उसके मुख से निद्रासन निकल गया। इसलिए उसने अधिक कालतक नींद लेने का वरदान मांगा। विभीषण ने बोला मेरे मन में कोई पाप विचार न उठे तथा बिना सीखे ही मेरे हृदय में ब्रम्हास्त्र के प्रयोग विधि स्फुरित हो जाए , राक्षस योनि में जन्म लेकर भी तुम्हारा मन अधर्म के रास्ते न जाकर धर्म की ओर चल रहा है तो तुम्हें अमर होने का भी वर दे रहा हूं ।
इस तरह वरदान प्राप्त कर लेने पर रावण सबसे पहले अलकापुरी पर आक्रमण किया। रावण और कुबेरदेव के बीच भयंकर युद्ध हुआ , लेकिन ब्रह्माजी के वरदान के कारण कुबेरदेव रावण से पराजित हो गए। रावण ने बलपूर्वक कुबेर से ब्रह्माजी द्वारा दिया हुआ पुष्पक विमान भी छीन लिया और रावण ने कुबेर से लंका को हड़पकर उस पर अपना शासन कायम किया।