यूनान के सम्राट को अपने धन-वैभव का बहुत घमंड था। उसे अपनी तारीफ सुनना अच्छा लगता था।
एक बार सम्राट ने यूनान के विद्वान 'सोलन' को अपने राजमहल में बुलाया। सम्राट को उम्मीद थी कि सोलन सम्राट के वैभव को देख कर प्रशंसा में कुछ कहेगा, किंतु सोलन था सुकरात जैसा विद्वान विचारक।
सम्राट ने सोलन को अपना खजाना भी दिखाया। किंतु खजाने में लूट-पाट कर भरे गये हीरे-जवाहरात भी सोलन की प्रशंसा न पा सके। सोलन चुप ही रहा। वह उदास-सा लग रहा था।
थक-हार कर सम्राट बोला ,” सोलन , इस संसार में तुम्हारे जैसा विद्वान नहीं और मेरे जैसा अकूत धन-संपदा का मालिक सुखी इंसान नहीं। प्रशंसा में कुछ तो कहो। यूनान में तुम्हारे शब्दों का मूल्य है। ”
सोलन ने कहा ,” राजन , मैं चुप ही रहूँ तो बेहतर रहेगा। ” सम्राट के पुनः आग्रह करने पर सोलन बोला ,” राजन , तुम निपट मूढ़ व्यक्ति हो। तुम्हारा यह सुख क्षणभंगुर है। यह शाश्वत नहीं है। सब मिथ्या है। तुम्हारा यह वैभव तुम्हारे दु:ख का कारण है। “
सम्राट का घोर अपमान हुआ। सोलन को मौत की सज़ा देने के लिए राजधानी के चौराहे पर लाया गया। उसे एक और मौक़ा दिया गया। सम्राट की प्रशंसा में दो शब्द कह दे तो जीवन दान मिले। किंतु सत्य कभी झुकता है भला!
सोलन ने कहा ,” मुझे आज नहीं तो कल मरना ही है। मृत्यु का निमित्त कुछ भी हो , मेरे लिए वह अर्थ नहीं रखता। झूठ मैं बोल नहीं सकता।” नतीज़ा , तलवार से सोलन का सिर धड़ से अलग कर दिया गया। उसके बाद हीरे-जवाहरात सम्राट को जैसे मुँह चिढ़ाने लगे। जैसे चमक फीकी पड़ गयी थी सम्राट के वैभव की।
समय ने करवट ली। सम्राट किसी दूसरे राजा के हाथों पराजित हुआ। मौत की सज़ा देने के लिए सम्राट को उसी चौराहे पर लाया गया। सम्राट को सोलन की याद हो आयी। सोलन के शब्द जैसे गूँजने लगे – यह सुख शाश्वत नहीं , क्षणभंगुर है। इस वैभव का कोई मूल्य नहीं। सब मिथ्या है।
सम्राट अब सोलन बन चुका था। सम्राट की आँखें बंद थीं। चेहरे पर मुस्कान थी। अंतिम श्वास के साथ सम्राट के मुख से सोलन का नाम निकला। विजयी राजा ने अंतिम समय में सम्राट की मुस्कान और ‘ सोलन ‘ नाम का रहस्य जानना चाहा। सब कुछ सुन कर राजा की जीत की खुशी जाती रही।