एक भक्त सांई से रोज प्रार्थना करता था , ‘ बाबा एक दिन मेरे घर भोजन करने की कृपा करें। ‘
बाबा रोज टाल देते थे। एक दिन भक्त के विशेष आग्रह पर उन्होंने स्वीकृति दे दी। कहा , ‘ मैं शाम छह बजे तुम्हारे घर पहुंच जाऊंगा , पर तुम चुक मत जाना। ‘
शाम के छह बज गए। भक्त प्रतीक्षा में ही बैठा रहा , लेकिन सांई नहीं आए थोड़ी देर में भक्त के द्वार पर हाथ में लकड़ी लिए वृद्ध पहुंचा। उसने भक्त से भोजन कि याचना की। भक्त ने कहा , ‘नहीं , भोजन सांईं के लिए है , तुम्हें नहीं मिलेगा। ‘
वृद्ध भिखारी ने काफी याचना की , लेकिन भक्त कुछ भी देने को तैयार न हुआ।
रात ढल गई , लेकिन सांई भोजन करने नहीं आए। दूसरे दिन भक्त ने आकर सांई को उलाहना दिया , ‘ बाबा ! मैं प्रतीक्षा में बैठा रहा किंतु आप नहीं आए। ‘
सांई ने कहा ‘ मैं तो आया था किंतु तुम चूक गए। मैंने मांगा , पर तुम इंकार कर गए। ‘
भक्त सारी बात समझ गया। उसने कहा , ‘ बाबा , भूल हो गई। आज जरूर पधारें। मैं आपके इंतजार में रहूंगा। ‘
सांई ने ‘ हां ‘ कर दी। भक्त ने भोजन में विविध पकवान बनाए और वह अपने घर के बाहर सांई के इंतजार में बैठ गया। भोजन का समय बीत गया , लेकिन सांई नहीं पहुंचे। अचानक उसने देखा कि घर में कोई कुत्ता घुस गया है। वह दौडा हुआ भीतर गया। देखा , कुत्ते ने खीर में डाल दिया था उसने उठाया और कुत्ते ने खीर में मुंह डाल दिया था। उसनेे डंडा उठाया और कुत्ते की पीठ पर दे मारा। कुत्ता भौंकता हुआ भाग गया।
जब उस दिन भी भोजन करने सांई न आए तो भक्त काफी हताश होकर दूसरे दिन सांई की कुटिया में उन्हें उलाहना देने के लिए पहुंचा। उसने देखा कि सांई अपनी पीठ पर दवा मल रहे थे। उसने पूछा , ‘ बाबा यह क्या हुआ ? दवा क्यों मल रहे हो ? ‘
सांई ने अपनी पीठ का घाव दिखाते हुए कहा , ‘तुमने ही मुझे कल डंडे से पीटा था। ‘
भक्त सांई के चरणों में गिर पड़ा वह कहने लगा , ‘ बाबा ! क्षमा कर दो , मैं आपको पहचान नहीं पाया था। ‘