हिन्दू सनातन धर्म में प्रायः त्रिदेवो ब्रह्मा , विष्णु तथा महेश को अन्य देवो में प्रधानता दी गयी है जिनमे ब्रह्माजी सृष्टि के रचियता है , भगवान विष्णु पालनहार व भगवान शिव संहारकर्ता है। भारत में आपको भगवान विष्णु और शिव के असंख्य मंदिर बड़े आसनी से मिल जायेंगे परन्तु ब्रह्मा जी का मंदिर आपको भारत ही नही बल्कि पूरी दुनिया में सिर्फ एक ही मिलेगा जो की राजस्थान के प्रसिद्ध तीर्थ स्थल पुष्कर में स्थित है।
पुष्कर में स्थित ब्रह्मा जी के मंदिर को यहाँ के लोग उनका निवाश स्थान बतलाते है। इतिहासकारो के अनुसार एक बार ओरंगजेब ने अपने शासन काल के दौरान अनेको हिन्दू मंदिरो को ध्वस्त करवाया परन्तु ब्रह्मा जी के इस मंदिर को वह छू तक नही सका। इस मंदिर के समीप ही एक बहुत ही सुन्दर और पवित्र झील प्रवाहित होती है। जिसे पुष्कर झील कहा जाता है। इस झील में स्नान करने के लिए 52 घाटो का निर्माण किया गया है। तथा कार्तिक माह में बहुत से श्रद्घालु इस पवित्र झील में स्नान करने के लिए आते है। शास्त्रो के अनुसार हर हिन्दू को अपने जीवन काल में एक बार पुष्कर धाम की यात्रा करना महत्वपूर्ण है। क्योकि यह भी प्रयाग और बनारस की तरह हिन्दुओ का एक बड़ा ही पुण्यदायी तीर्थ स्थल है। माना जाता है की पुष्कर में स्नान करने के बाद ही कोई व्यक्ति बद्रीनारायण , जगन्नाथ , रामेश्वरम , द्वारका की यात्रा को प्राम्भ कर सकता है।
ब्रह्मा जी के मंदिर का निर्माण कब हुआ व किसने किया इसका कोई उल्लेख नहीं है। लेकिन ऐसा कहते है की आज से तकरीबन एक हजार दो सौ साल पहले अरण्व वंश के एक शासक को एक स्वप्न आया था कि इस जगह पर एक मंदिर है जिसके सही रख रखाव की जरूरत है। तब राजा ने 14 वी शताब्दी में इस मंदिर के पुराने ढांचे को दोबारा जीवित किया। ब्रह्मा जी का यह मंदिर संगमरमर से बना हुआ है तथा इस मंदिर को चांदी के सिक्को से सजाया गया है।
इस तीर्थ स्थल पुष्कर और मंदिर से संबंधित पद्यपुराण में एक कथा उल्लेखित है। जिसके अनुसार एक बार पृथ्वी पर वज्रनाश नामक राक्षस ने अपने अत्याचारों से आतंक मचा रखा था। ब्रह्मा ने उसके अत्याचारों से पृथ्वीवासियो को मुक्त करने के लिए उसका वध कर दिया। जब ब्रह्मा जी वज्रनाश से युद्ध कर रहे थे तब उनके हाथो से तीन कमल के पुष्प तीन जगहों पर गिरे व इन जगह पर तीन झीलों का निर्माण हुआ। इस के बाद ब्रह्मा जी ने पूरी धरती के भलाई के लिए पुष्कर में एक यज्ञ का आयोजन किया जिसके लिए उन्हें एक शुभ मुहर्त का इंतजार था।
परन्तु जब वह शुभ मुहर्त आया तब ब्रह्मा जी की पत्नी सरस्वती किसी कारण यज्ञ स्थल में समय से ना पहुंच सकी। ब्रह्मा जी ने यज्ञ में विलम्ब होते देख यज्ञ आरम्भ करने के लिए एक ग्वालिन गायत्री नामक स्त्री से विवाह कर लिया क्योकि सनातन धर्म में कोई भी धर्मिक कार्य बिना पत्नी के सम्पन्न नही हो सकता। जब कुछ देर बाद माँ सरस्वती उस यज्ञ में पहुंची तो अपने पति को यज्ञ में किसी अन्य स्त्री के साथ देख क्रोधित हो गई और ब्रह्मा जी को श्राप दिया की आप की पूजा धरती में कभी भी और कहीं भी नही होगी ।
माँ सरस्वती के क्रोध शांत होने व देवताओ के निवेदन पर उन्होंने ब्रह्मा जी को क्षमा कर दिया। परन्तु वे श्राप वापस नही ले सकती थी। अतः उसे बदलते हुए वे बोली की केवल इस स्थल पुष्कर में ही आप का एक मंदिर होगा और यही आप पूजे जाओगे। उसी दिन से पुष्कर धाम ब्रह्माजी का निवाश स्थान बन गया।
क्या फर्जी और रटी-रटाई बात लिखते हो! ब्रह्मा का 1 नहीं 2 मंदिर है। दूसरा दक्षिण में स्थित है। थोड़ा रिसर्च भी कर लिया करो
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